Saturday, June 16, 2012

सब कुछ ही तो हमारे इर्दगिर्द ही ,सहज ही उपलब्ध है , तब फिर यह व्यर्थ की भागदौड़ किसलिए ?


सब कुछ ही तो हमारे इर्दगिर्द ही ,सहज ही उपलब्ध है , तब फिर यह व्यर्थ की भागदौड़ किसलिए ?

सम्पूर्ण जीवन जीने के लिए जरूरी है घर , कपडे , भोजन , पानी , चिकित्सा , शिक्षा , मनोरंजन , खेलकूद , पर्यटन और समाज और इन सब के लिए रोजगार  .
यह सब कुछ ही तो हमारे इर्दगिर्द ही ,सहज ही उपलब्ध है .
यदि हम अपने निवास स्थान से १०० किलोमीटर के दायरे में ही अपने आपको सीमित रखें तो हमारे जीवन में कोई कमी रहने वाली नहीं है .
तब फिर यह व्यर्थ की भागदौड़ किसलिए ?
उक्त सभी वस्तुओं के अलावा और जो आवश्यकताएं हम महसूस करने लगे हें वे सब बनाबटी (created) हें , वास्तविक नहीं .
हम एक नई आवश्यकता प्रतिपादित करते हें तो उसकी पूर्ती के लिए एक नई आवश्यकता खड़ी हो जाती है और यह सिलसिला अनन्त तक बढ़ता ही जाता है .
हमारी इसी वृत्ति का परिणाम है हमारी आज की यह दुर्दशा , हमारी आज की यह जीवन शैली , हमारी आज की यह आपधापी और भागदौड़ .
क्या सचमुच हमें इस सब की आवश्यकता थी , है ?
क्या इस कीमत पर भी ?
इस दुर्दशा की कीमत पर भी ?
यदि नहीं ; तो क्यों नहीं हम समेट लेते हें अपने आप को .
दुनिया में कोई कमी न होगी और आपके जीवन में भी कोई कमी रहने वाली नहीं है , आपको वह सब कुछ तब भी उपलब्ध रहेगा जो आज है .
कैसे ?
क्योंकि हम चाहे कितने भी प्रयास क्यों न करलें , दुनिया के सभी लोग हमारी यह बात मानने वाले नहीं हें .
वे आपके लिए उन सभी वस्तुओं का उत्पादन करते ही रहेंगे जिनका उपभोग आप आज कर रह्हे हें और महसूस करने लगे हें क़ि "यह तो चाहिये "

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