Saturday, June 16, 2012

Parmatm Prakash Bharill: सब कुछ ही तो हमारे इर्दगिर्द ही ,सहज ही उपलब्ध है ...

सारी दुनिया में अजीव सी आपाधापी मची है , हर कोई दौड़ रहा है , इधर से उधर , सुबह से शाम तक . किसी को चैन  नहीं , कोई शुकून  नहीं .
क्यों ? किसलिए ? क्या इसके बिना जीवन न चलेगा ? क्या कमी रह जायेगी इसके बिना ? यह सब करके भी तूने क्या पा लिया है ?


Parmatm Prakash Bharill: सब कुछ ही तो हमारे इर्दगिर्द ही ,सहज ही उपलब्ध है ...: सब कुछ ही तो हमारे इर्दगिर्द ही ,सहज ही उपलब्ध है , तब फिर यह व्यर्थ की भागदौड़ किसलिए ? सम्पूर्ण जीवन जीने के लिए जरूरी है घर , कपडे...

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