Friday, June 8, 2012

जिनके सर पर मात्र घर चलाने की जबाबदारी हो , जब वे भी बिकने पर मजबूर हो जाते हें तब उनके क्या कहने जिनके पास बड़ी - बड़ी पार्टियां हें चलाने को .

बस एक बागबां काफी है , कितने ही चमन सजाने को 

जिनके सर पर मात्र घर चलाने की जबाबदारी हो , जब वे भी बिकने पर मजबूर हो जाते हें तब उनके क्या कहने जिनके पास बड़ी - बड़ी पार्टियां हें चलाने को .
घर के मालिक को चार को पालना है तो पार्टी के मालिक को ४ करोड़ को .
इसलिए मैं कहता हूँ क़ि ये पार्टियां किसी का भला नहीं कर सकतीं हें .
इनकी धार कुंद हो गई है .
इनकी प्राथमिकता देश नहीं रहा , पार्टियां हो गई हें .
इसलिए इन पार्टियों का चक्कर छोड़ो ?
यदि किसी को देश का कुछ भला करना है तो पार्टी मत बना लेना .
यदि पार्टी बना ली तो देश एक तरफ रह जाएगा , बस पार्टी ही सब कुछ हो जायेगी .
ये पार्टी बाले बीबी-बच्चों बालों से भी ज्यादा मजबूर होते हें बेचारे.
अब वेचारे अन्ना को ही ले लो !
अपने इर्दगिर्द सिर्फ दो-चार ही को तो इकट्ठा किया है फिर भी कितनी दुर्गत हो रही है ,
कभी कोई कुछ बोलता है , कोई कुछ टार्राता है .
अब अन्ना किस किस को तो चुप करें और किस-किस की सफाई दें ?
फिर वेचारों को बच्चे पालने का भी तो कोई अनुभव नहीं है .
यदि कोई तीन बच्चों को पाल ले तो देश चलाना सीख जाता है .
बिना बच्चों वाला तो स्वयं अपने आपको ही नहीं संभाल पाता है .
फिर भी कोई बात नहीं .
यह भी तो महत्वपूर्ण सबाल है क़ि "अन्ना नहीं तो कौन "

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