Wednesday, July 11, 2012

पुकार मेरे हुकूक की दिल में रही रहन उन सिसकियों के बोल से बबाल हो गये

15.9.83

शूलों की तो आदि से 
सहते रहे चुभन 
इक पंखरी की धार से 
हलाल हो गये 

पुकार मेरे हुकूक की 
दिल में रही रहन 
उन सिसकियों के बोल से 
बबाल हो गये

आज ये मेरी व्यथा
हो चली नगन
मेरे वसन के चीन्थ्ड़े
रूमाल हो गए

नसीहतें उसूल की
कबकी हुई दफ़न
नेकीओं की बात तो
ख्याल हो गए

खाके जग की ठोकरें
ये फट पडी घुटन
अब आंसुओं के दायरे
विशाल हो गए

न पिघला सकेगी फिर कभी
दग्ध हिये की तपन
मोम के जो ढेर थे
ज्वाल हो गए

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