Friday, July 13, 2012

अरे ! एक ब़ार वीतरागता और सर्वज्ञता को तू अपनी कल्पना में तो बसा ! अरे कंजूस ! कल्पना में भी क्या कंजूसी ? और फिर तू कंजूस है भी कहाँ ? तू अपनी कल्पना के घोड़े चाँद - तारों तक तो दौडाता है फिर इस आत्मा से क्यों बेरुखी ?

अरे ! एक ब़ार वीतरागता और सर्वज्ञता को तू अपनी कल्पना में तो बसा !
अरे कंजूस !
कल्पना में भी क्या कंजूसी ?
और फिर तू कंजूस है भी कहाँ ?
तू अपनी कल्पना के घोड़े चाँद - तारों तक तो दौडाता है फिर इस आत्मा से क्यों बेरुखी ?
यदि एक ब़ार वीतरागता और सर्वज्ञता को तू अपने चिंतन का बिषय बनाएगा तो तू स्वयं वीतराग ,सर्वज्ञ हो जाएगा .
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http://www.facebook.com/pages/Parmatmprakash-Bharill/273760269317272

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