Friday, July 13, 2012

Parmatm Prakash Bharill: अरे ! एक ब़ार वीतरागता और सर्वज्ञता को तू अपनी कल्...

Parmatm Prakash Bharill: अरे ! एक ब़ार वीतरागता और सर्वज्ञता को तू अपनी कल्...: अरे ! एक ब़ार वीतरागता और सर्वज्ञता को तू अपनी कल्पना में तो बसा ! अरे कंजूस ! कल्पना में भी क्या कंजूसी ? और फिर तू कंजूस है भी कहाँ ? तू ...

No comments:

Post a Comment