Thursday, August 9, 2012

------------------जैसे - जैसे प्रकृति के रहस्य खुलते हें , वैसे - वैसे मेरा डर बढ़ता जाता है .--------- क़ि इस संसार में मेरी पोल पट्टी चलने बाली नहीं है ------------------------उसकी व्यवस्था में अंधेर संभव नहीं दिखता है ----------------------यहाँ कोई पोलपट्टी संभव नहीं ! यहाँ तो अपने हर कृत्य का परिणाम भोगना ही होगा . ------------------और फिर महंत बना फिरे यह संभव ही नहीं है ----------------------हमें डरना ही होगा , हमें संभालना ही होगा , हमें सुधारना ही होगा . हमें न्याय और नीति के मार्ग पर चलना ही होगा . हमें शरीफ बनना ही होगा .


------------------जैसे - जैसे प्रकृति के रहस्य खुलते हें , वैसे - वैसे मेरा डर बढ़ता जाता है .--------- क़ि इस संस
ार में मेरी पोल पट्टी चलने बाली नहीं है ------------------------उसकी व्यवस्था में अंधेर संभव नहीं दिखता है ----------------------यहाँ कोई पोलपट्टी संभव नहीं !
यहाँ तो अपने हर कृत्य का परिणाम भोगना ही होगा .
------------------और फिर महंत बना फिरे यह संभव ही नहीं है ----------------------हमें डरना ही होगा , हमें संभालना ही होगा , हमें सुधारना ही होगा .
हमें न्याय और नीति के मार्ग पर चलना ही होगा .
हमें शरीफ बनना ही होगा .





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