Friday, October 12, 2012

दिनरात बस एक ही चिंतन . वही दुनियाभर के परद्रव्य को किस तरह हथिया लूं , अपना बना लूं .


हम सभी चौर्य वृत्ति के धारक हें ( यानिकि हम सभी चोर हें )
हममें से कौन तंदुल मत्स्य नहीं है ?
हम सभी तो वही हें .
दिनरात बस एक ही चिंतन .
वही दुनियाभर के परद्रव्य को किस तरह हथिया लूं , अपना बना लूं .
किसी भी तरह , साम , दाम , दंड या भेद से .
अरे ! पर द्रव्य कभी अपना हुआ है ?
एक तो तेरे इन पाप परिणामों के चलते कुछ तेरे पास आने वाला नहीं है और यदि आ भी गया तो तुझे नौकरी मिल जायेगी , उसकी चौकीदारी करने की नौकरी .
बस लगे रहना काम पर , तेरी चौकीदारी से कुछ रुकता है क्या ? वह तो तू अपने विकल्प से बंधा रहता है और वह द्रव्य अपनी योग्यता से उसे जहां होना होता है बहां बना रहता है .
जब उसका क्षेत्रान्तर होने का काल आता है तो वह चला जाता है , तब वह तेरी आज्ञा का इन्तजार नहीं करता , अरे ! तुझे सूचित भी नहीं करता है .
तू इतने दिन चौकीदारी करता रहा , अपनी रातों की नींद और दिन का चैन हराम करके और तू एक क्षण को गाफिल हुआ और वह चल देता है .
अरे ! जब जाने का काल आ जाएगा तब तू सजग भी बना रहेगा तब भी चल ही देगा , तेरे रोके रुकेगा नहीं , तू स्वयं अपने हाथों से उसे किसी को सोंप देगा .
द्रव्य के आने के बारे में भी यही क्रम है , तू सोता ही रहेगा तब भी आने के काल में यूं ही दौड़ा चला आयेगा और तेरे संभाले बिना तेरे पास बना भी रहेगा ; और तो और तेरे उलीचने पर भी जाएगा नहीं .
तब फिर क्यों व्यर्थ ही दिन रात इन विकल्पों में डूबा रहता है ?
निर्भार रह ! तेरा कल्याण होगा !

1 comment:

  1. नन्हे भाई जी
    आशीर्वाद
    बहुत ही सुंदर शिक्षा प्रद लेख
    आज कोई आचरण नहीं करता
    जब हम भोजन पानी ही नहीं जमा कर सकते
    पूंजी धन तो कैसे रहेगी |अच्छे विचारों का धन ,मानवता का धन ही असली धन है (धन्यवाद )--

    ReplyDelete