हिंसा तो मात्र प्रतिहिंसा को ही जन्म देती है , किसी के उपर इंट फेककर आप अपने ऊपर पुष्प की उम्मीद नहीं कर सकते हें , आपको जबाब पत्थर से ही मिलेगा , क्योंकि यहाँ तो सभी कषायों के चक्रवर्ती हें , कोई किसी से कम थोड़े ही है .
जब आप किसी को इंट फेककर मारेंगे तो सिर्फ बदला लेने के लिए ही नहीं वरन अपनी रक्षा करने के लिए भी तो उसे पत्त्थर का सहारा लेना पड सकता है ! कारण कुछ भी हो पर आप पर पत्थर बरसना तय है .अगर आप फूलों की माला पहिनना चाहते हें तो आपको अन्यों पर फूल ही बरसाने होंगे , फूल सा कोमल व्यवहार करना होगा , फूल सा मोहक दिखना होगा , फूल सा सौरभ बिखेरना होगा .
किसी की शांति भंग करके हम शान्ति से नहीं बैठ सकते हें , हमारे हमले से जब वह चीत्कार करेगा तो हमारी शान्ति भंग होना तय है .
जीवन में शुकून के लिए तो यह आवश्यक है ही कि हमारे जीवन में , हमारे चारों और शांति हो पर जीवन में आगे बढ़ने के लिए तो यह और भी जरूरी हो जाता है , यदि हमारे चारों और अशांति होगी तो हमारी अधिकतम शक्ति और समय बस सिर्फ उससे निपटने में और उसे मैनेज करने में ही खर्च हो जायेगी , जैसे कि कच्ची जमीन में बनी पानी की टंकी अधिकतम पानी स्वयं ही पी जाती है .
जो सुख , शुकून और शान्ति हमारी प्रथम और मूलभूत आवश्यकता है उसकी प्राप्ति के लिए क्या हम इतना भी नहीं कर सकते हें ?
सामने वाले से को अपेक्षा मत कीजिये , यह मत सोचिये कि सिर्फ मैं ही क्यों करूं , कुछ तो उसे भी करना चाहिए , बदलना चाहिए .
नहीं शान्ति की आवश्यकता आपको है , उसे शायद न हो या कम हो , उसे शायद इसका महत्व ही पता न हो .
यह तो विवेकपूर्ण कार्य है और जरूरी नहीं की सभी एक जैसे विवेकी हों .
क्या उसके अज्ञान और अविवेक की सजा आप अपने आप को देंगे ?
नहीं न ?
हमारे लिए यदि हम ही नहीं करेंगे , हम ही नहीं सोचेंगे तो कौन करेगा , कौन सोचेगा ?
ठीक है न ?
तो फिर देर किस बात की है ?
काम पर लग जाइये !
आज नहीं अभी .
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