एक साथ .एक छत के नीचे रहने वाले लोग संघर्ष टालने के प्रयास में एक दुसरे से बात करना बंद कर देते हें और अबोले की स्थिति निर्मित कर लेते हें , ऐसे में निर्मित तात्कालिक शून्य को वे शांति समझने की गल्ती कर बैठते हें , जो यथार्थ से परे है .
तो सच्चाई क्या है ?
लीजिये ! जानिये !!
यदि हमारे विचारों में अंतर है और हमें साथ-साथ रहकर काम करना है , इसका उपाय वार्तालाप बंद करना नहीं वरन बेहतर वार्तालाप करना है क्योंकि अब हमें सिर्फ अपने विचारोँ का आदान-प्रदान ही नहीं करना है वल्कि एक दुसरे को अपने आप से सहमत भी करना है .
जब हम अपनी बात कह देते हें तब सिर्फ वही कहते हें जो हम कहना चाहते हें , पर यदि हम चुप रहते हें तो बहुत कुछ कहते हें , तब सारी की सारी संभावनाएं खुली रहती हें , सामने वाला जो चाहे वह समझले .
ऐसी स्थिति में हमें उन विचारों का प्रतिनिधि बनना पड़ता है जो विचार हमारे हें ही नहीं , जिनसे हम सहमत ही नहीं हें .
यह हमारे लिए कठिनतम स्थिति हो सकती है .
इसलिए हम सचमुच यदि विपरीत स्थितियां निर्मित होने से बचना चाहते हें और बात बढ़ाना नहीं चाहते , अधिक बात नहीं करना चाहते तब हमें संक्षिप्त और स्पष्ट वार्तालाप बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है .
हमारी ओर से अपने विचार स्पष्ट न करने की स्थिति में सामने वाले के किसी भी प्रकार के क्रियाकलापों से निर्मित हमारे अनुकूल या प्रतिकूल परिस्थितियों की जिम्मेदारी हमारी अपनी है सामने वाले की नहीं क्योंकि चाहे वह आपके अत्यंत अनुकूल वर्तन ही करना चाहता हो और आपसे प्रतिकूल होने से बचना ही चाहता हो तब भी वह ऐसा कर कैसे पायेगा , जब उसे मालूम ही नहीं कि आखिर आप चाहते क्या हें .
संबादहीनता के हालात में यदि शान्ति बरकरार है तो यह अत्यंत ही आश्चर्य का बिषय है क्योंकि ये हालात शान्ति के कारक नहीं हें और हमें संतुष्ट होने की बजाय शंकित रहना होगा , निश्चित ही यह भयंकर बिस्फोट से ठीक पहिले की शांति है . कुछ लोग भूल से इसे शान्ति मानकर सम्बादहीनता को आदर्श स्थिति मानने की गंभीर भूल कर बैठते हें .
जब बार्तालाप चालू रहता है तो दोनों ही पक्षों को मालूम होता रहता है कि सामने वाले के मन मी स्थिति क्या है , उसके दिमाग में क्या चल रहा है .
उक्त हालात में वह संभावित परिस्थितियों से निपटने के के लिए तैयारी भी कर सकता है पर संबाद हीनता की स्थिति में हमें पता ही नहीं चल पाता है कि सामने वाले के इरादे कितने खतरनाक हें और हम गाफिल रह जाते हें .
कभी - कभी उलटा भी हो सकता है , हम सामने वाले के खतरनाक इरादों की कल्पना करके अपने सारे अन्य काम छोड़कर वस् उससे निपटने के प्रयास में ही अपनी शक्ति झोक देते हें जबकि सामने बाले के मन में ऐसा कोई विचार था ही नहीं , और इस प्रकार हम अपनी शक्ति और समय की बर्बादी कर देते हें .
स्थितियां दोनों ही खतरनाक हें और हमें दोनों ही स्थितियों से बचने के लिए जरूरी है की हम सभी सम्बंधित पक्षों के साथ उचित संबाद की स्थिति जारी रखें .
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