Monday, May 13, 2013

हम जितने सम्बेदनशील उस एक दिन की मौत के प्रति हें उतने इस प्रतिपल की मौत के लिए नहीं , जबकि यह पल - पल की मौत ही तो हमें प्रतिपल उस एक दिन की मौत की ओर धकेल रही है .

यह तो हम सभी मानते हें कि हमें एक दिन मरना है , पर हम प्रतिपल मरते हें ,इस तथ्य की और हमारा ध्यान ही नहीं जाता है .
जो पल बीत गया वह नष्ट हो गया हमेशा के लिए , अब वह लौटकर नहीं आयेगा ठीक है न ? बस इसी को तो म्रत्यु कहते हें .
हम जितने सम्बेदनशील उस एक दिन की मौत के प्रति हें उतने इस प्रतिपल की मौत के लिए नहीं , जबकि यह पल - पल की मौत ही तो हमें प्रतिपल उस एक दिन की मौत की ओर धकेल रही है .
यदि हमें अपना जीवन सार्थक करना है तो अपने एक-एक पल को सार्थक करना होगा -


जीवन तू , तू जीवन है , है तुझसे देह का ये जीवन
तू न मरेगा , देह मरेगी , जिस दिन तू बदलेगा तन
उस म्रत्यु की परवाह किसे, जो निश्चित ही आनी है
नहीं किया सार्थक यदि तो , जीवन जीना बेमानी है

मिट जाएगा माटी में इक दिन,यह भ्रांत धारणा तेरी है
तुझको लगता है,होगा तो ये , पर कुछ दिनों की देरी है
जैसे तू पल-पल जीता है , त्यों हर पल बीते तू मरता है
माटी में ही चला गया पल , यदि नहीं सार्थक करता है

मैं तो चिंतित हूँ पल-पल की , इस म्रत्यु की पीड़ा से
 क्या कोई मार्ग दिखाएगा , इससे छुटकारा दिलबा दे
पल-पल का ना जीवन हो , जयवंत बने जीवन मेरा
साथ यदि जा पाए ना कुछ , तब क्या तेरा,क्या मेरा

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