Wednesday, October 2, 2013

कुछ लोग धर्म के नाम पर चमत्कार दिखाना चाहते हें या चमत्कार के नाम पर धर्म चलाना चाहते हें

कुछ लोग धर्म के नाम पर चमत्कार दिखाना चाहते हें या चमत्कार के नाम पर धर्म चलाना चाहते हें , पर धर्म तो चमत्कार के विरुद्ध है या यूं कहिये की चमत्कार धर्म के विरुद्ध है। 
जो उसने नहीं किया , जो वह न कर सका , तू वह करने का दाबा करता है ?
यह तो सर्व शक्तिमान के विरुद्ध विद्रोह है 
यह तो उससे आगे बढ़ने का प्रयास है 
यह आस्तिकता कैसे हो सकती है ?
यह धर्म कैसे हो सकता है ?

यदि आप मानते हें कि " भगवान् , ईश्वर-अल्लाह या गॉड ही जगत का संचालन करते हें और उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता है " तब चमत्कार किसने किया ?
आपने या ईश्वर-अल्लाह या गॉड ने ?

यदि आपने किया तो उनकी मर्जी के विरुद्ध किया या उनकी मर्जी से ?

यदि विरुद्ध किया तो आप धर्म के विरोधी हो गए। 
यदि उनकी मर्जी से किया तो उनके द्वारा बनायी और संचालित यह स्रष्टी और इसकी वस्तु अपने आप में ही चमत्कृत करने वाली है इसमें तेरे इन छोटे-मोटे टोटकों को कहाँ स्थान है ? और फिर जो तूने किया सो उसीका किया तो हुआ , इसमें तू कौन ?

nature जिसे allow नहीं करती है , ऐसा तो कुछ किया ही नहीं जा सकता है , जो हुआ है वह  nature के क़ानून के अनुसार हुआ है , तब चमत्कार कैसा ?

फिर चमत्कार तो उसे कहा जाए जो लोगों के सर चडकर बोले , जो लोगों को दिखे ही नहीं , समझ ही न आये , अनेकों प्रयत्न पूर्वक दिखाना और समझाना पड़े , जिसे समझने में बर्षों लगें , कोई माने - कोई न माने , वह कैसा चमत्कार ?
यदि आप चमत्कारी हें , चमत्कार कर सकते हें तो ऐसा कुछ करें कि सबको दिखे , समझ में आये , स्वीकृत हो !
फिर जीवन में सिर्फ एक या दो ही क्यों ? रोज क्यों नहीं ?
यदि आप कर ही सकते हें तो क्यों नहीं करते ?

क्या आप मेरी राय से सहमत हें ?
आपको क्या लगता है ?
चमत्कार कुछ होता है ?
क्या चमत्कार हो सकता है ?

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