क्या यही है जीवन ? (कविता)
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
इस जिन्दगी की पोथी का , एक पन्ना हर दिन पलट जाता है
आधी से ज्यादा पलट डाली , पर नया कुछ नजर नहीं आता है
हरएक पन्ने पर एक सी ही इबारत लिखी है,ऊब गया हूँ पड़ते
कितना रूखा रहा होगा वो लेखक , जिसने ये कहानी लिखी है
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
इस जिन्दगी की पोथी का , एक पन्ना हर दिन पलट जाता है
आधी से ज्यादा पलट डाली , पर नया कुछ नजर नहीं आता है
हरएक पन्ने पर एक सी ही इबारत लिखी है,ऊब गया हूँ पड़ते
कितना रूखा रहा होगा वो लेखक , जिसने ये कहानी लिखी है
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