Thursday, February 6, 2014

सारी दुनिया बस इनमें सिमटी नजर आती है

क्या यही चलता रहेगा (कविता)
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

मैं पूरिओं से  उबकर , पराठों पर आता हूँ

उनसे थकता हूँ तब सूखी रोटियाँ खाता हूँ


हर हफ्ते बस यह़ी कथा दोहराई जाती है


सारी दुनिया बस इनमें सिमटी नजर आती है


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