क्या यही चलता रहेगा (कविता)
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
मैं पूरिओं से उबकर , पराठों पर आता हूँ
उनसे थकता हूँ तब सूखी रोटियाँ खाता हूँ
हर हफ्ते बस यह़ी कथा दोहराई जाती है
सारी दुनिया बस इनमें सिमटी नजर आती है
- परमात्म प्रकाश भारिल्ल
मैं पूरिओं से उबकर , पराठों पर आता हूँ
उनसे थकता हूँ तब सूखी रोटियाँ खाता हूँ
हर हफ्ते बस यह़ी कथा दोहराई जाती है
सारी दुनिया बस इनमें सिमटी नजर आती है
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