Wednesday, April 15, 2015

इसमें दोष किसी का नहीं है. आखिर शतरंज का खेल है ही ऐसा.

क्या आप भी शतरंज के खिलाड़ी हें ?

आखिर शतरंज का खेल है ही ऐसा.

-परमात्म प्रकाश भारिल्ल

  -    शतरंज का खेल २ बाजी पहिले वाले अपने वैभव की यादों के आधार पर नहीं खेला व जीता जा सकता है, इसमें तो बिसात पर बिछे मोहरों की वर्तमान स्थिति ही काम आती है.

शतरंज के खेल में तो बे मूर्ख ही कहे जायेंगे जो अपने भूतकाल के वैभव को याद करके अपना वर्तमान बर्बाद करते हें.
यदि आप शतरंज के खिलाड़ी हें तो आपको एक बात ध्यान रखनी चाहिए, सामने वाले की हर चल के बाद आपको सोचना होगा और बहुत सोचकर अपनी आगामी नीति निर्धारित करनी होगी.
सिर्फ आगामी एक चाल के लिए नहीं वरन आगामी १०-२० चालों के लिए, खेल की अंतिम चाल तक के लिए.
पर इसका मतलब यह नहीं कि अब आपको आगे सोच-विचार की जरूरत ही नहीं है और अब आप अपनी पूर्व निर्धारित चालें चलते रहें.
सामने वाले की अगली चाल के बाद आपको यही प्रक्रिया फिर से दोहरानी है, एक बार फिर आपको खेल की अंतिम चाल तक की योजना बनाकर ही अपनी एक चाल चलनी है, और यही क्रम खेल की अंतिम चाल तक जारी रहेगा.
हर बार आपको योजना सम्पूर्ण ही बनानी है खेल की अंतिम चाल तक की और फिर हर कदम पर सजगता पूर्वक अपनी योजना बदल भी डालनी है. न तो आप सम्पूर्ण योजना बनाए बगैर एक भी चाल चल सकते हें और न ही एक चाल के बाद अपनी योजना पर कायम रह सकते हें.
कैसा बिरोधाभास है यह ?
शतरंज के खेल में गफलत को कोई स्थान नहीं है व आप एक चाल के लिए भी सामने वाले पर भरोसा नहीं कर सकते कि वह वही चाल चलेगा जो आपने उसके लिए सोच रखी है.
आखिर वह भी तो आप ही की तरह शतरंज का खिलाड़ी है और वह भी आपकी ही तरह बनी बनाई लीक पर चलने में भरोसा नहीं करता है, वहभी प्रत्येक चाल के बाद फिरसे अपनी नीति निर्धारित करता है.
जब वह ही आपके द्वारा उसके लिए सोची गई चाल नहीं चलेगा तो आप भी कैसे उसका जबाब देने के लिए अपने लिए पहिले से सोची गई चाल चल सकेंगे. जब उसकी चाल बदल गई तो आपको अपनी चाल भी बदलनी ही होगी, इस प्रकार आपको प्रत्येक पल जाग्रत और जागरूक ही रहना होगा, आप एक पल भी गाफिल नहीं रह सकते हें क्योंकि आपने शतरंज का खेल खेलना स्वीकार किया है.
यह तो सच है कि सामने वाला आपका मित्र ही है, अत्यंत करीबी और सबसे पक्का, इसीलिये तो आप उसके साथ खेलते हें पर अब इस खेल में वह आपका प्रतिद्वंद्वी है, सबसे प्रवल प्रतिद्वंद्वी, एक मात्र प्रतिद्वंद्वी और प्रतिद्वंद्वी मात्र, अन्य कुछ भी नहीं.
खेल में आप उससे किसी भी प्रकार की मुरब्बत की उम्मीद नहीं कर सकते हें. यदि आपने ऐसा किया तो मान लीजिये कि आपने पराजय की अपनी नियति सुनिश्चित करली है.
इसमें दोष किसी का नहीं है.
आखिर शतरंज का खेल है ही ऐसा. 
  

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