Thursday, April 23, 2015

हम किसके लिए जी रहे, किसपर मर रहे हें ?

हम किसके लिए जी रहे, किसपर मर रहे हें ?
-    परमात्म प्रकाश भारिल्ल
जगत में न तो सामग्री की कमी है और न ही सत्ता, सम्मान और यश की. सब कुछ अनंत है और खुली आम बिखरा पडा है, जो (व्यक्ति) जो (वस्तु) चाहे बटोरले, न कोई रोकने वाला है और न ही पूंछने वाला. लडाइयां फिर भी होती हें, संघर्ष होते हें, स्पर्धा होती है, जीत हार का भाव पैदा होता, इर्ष्या होती है.

यह समस्या क्यों खडी होती है ?

समस्या मात्र यह नहीं है कि -

“ मैं तो वही खिलौना लूँगा
मचल गया दीना का लाल
 खेल रहा था जिसको लेकर
राजकुमार उछाल – उछाल “

इसके ठीक उलट समस्या यह भी है कि -

“ मैं तो वही खिलौना लूँगा
मचल गया शिशु राजकुमार
वह बालक पुचकार रहा था
पथ में जिसको बारबार “

समस्या यह नहीं है कि क्या अच्छा है क्या बुरा, क्या सुलभ है और क्या दुर्लभ, समस्या तो यह है कि सभी को एक साथ, एक ही समय पर, एक ही अवसर पर, एक ही स्थान पर, वही एक ही वस्तु चाहिए.
किसी एक को नहीं, अलग समय पर नहीं, अलग अवसर पर नहीं, अलग स्थान पर नहीं और उससे भी बेहतर कोई अन्य वस्तु नहीं.

यह चाह वस्तु की नहीं, यहाँ मुद्दा कोई और है.
कीमत ककडी की नहीं, ककडी की कोई कमी भी नहीं; पर बस ! उस मौके पर वह ककडी “कौन ले गया और कौन रह गया” यह सारा संसार इन भावनाओं के इर्दगिर्द ही रचा हुआ है.
वह सिर्फ इसलिए शर्म का मारा आत्महत्या कर लेता है कि उसका नौकर (वह स्वयं नहीं) उस दूसरे के नौकर के सामने वही ककडी, उस वक्त खरीद पाने में असमर्थ रहा.
वह ककडी की चाहत में, ककडी के अभाव में या ककडी के लिए नहीं मरा.
(याद करिए चंद्रधर शर्मा “गुलेरी” की कहानी- “ककडी की कीमत”)
ककड़ियों से तो बाजार अटा पडा था.
यूं तो उसी ककडी में कुछ विशेष नहीं था पर यदि था भी तो वही ककडी तो उसे मिल भी गई थी, मुफ्त ही, भेंट में.
अब आप ही बतलाइये कि ककडी के अभाव ने उसकी जान ली या ककडी की उपलब्धि ने ?
अभाव ने नहीं, क्योंकि ककडी तो उसे उपलब्ध हो ही गई थी, वही ककडी !
उपलब्धी ने भी नहीं, क्योंकि उसने तो उस ककडी को छुआ तक नहीं, ग्रहण किया ही नहीं.

तब किसने ?
वह ककडी, उस वक्त, वहां, उस अवसर पर उसका नौकर न पा सका, मुद्दा बस यह था जो उसकी मौत का कारण बना
मौत का कारण न तो ककडी थी और न अवसर, मौत का कारण बना उसका अहंकार !
हम सभी तो इसी में ही तो उलझे हुए हें.
ऐसे में ही जी रहे हें, इसीके लिए मर रहे हें.
और कुछ भी नहीं !

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