Friday, September 2, 2011

है कामना कि , एक दिन तुम शिखर छूलो


1
है कामना कि , एक दिन तुम शिखर छूलो
पर याद रखना एक दिन ना भू को भूलो
रे शिखर पर मात्र तेरी,पताका लहरायेगी
काम तो प्रत्येक दिन , भूमि तेरे आयेगी
2
अधिक दिन तक रे शिखर पर,कोई टिक सकता नहीं
रे शिखर के मोह में , जीवन ये रुक सकता नहीं
रे शिखर के सफ़र की ,श्रुति इतिहास में रह जायेगी
और गलियों की महक ये , जिन्दगी बन जायेगी
3
यदि बन गये सिरमौर तुम ,बस अकेले रह जाओगे
अपना जहां ना कोई होगा ,पराये भी ना पाओगे
अपनत्व वा एकत्व है ना ,चुनौतियाँ ये शिखर कीं
शिखर पर बस एक रहता ,यह एक सीमा शिखर की
4
है विशालता मैदान में , अरु शिखर पर संकीर्णता
है शिखर पर एकांत वह , ह्रदय को जो चीरता
शिखर की हो यदि कामना ,तो अकेले ही चल पड़ो
चल कर गिरो पर ना रुको,तुम फिर उठो,उठकर चलो
5
शिखर पर ना राह कोई , जो कहीं ले जा सके
वहां बैठा कोई नर ना ,अब कोई मंजिल पा सके
यह जमीं है जो नित नई ,संभावना दिखलाएगी
भूमि पर बो राह है जो , शिखर तक ले जायेगी
6
हें पतन की संभावनाएं ,अनन्ती उस शिखर पर
देखो कभी गाफिल न रहना, पहुंचकर तुम उधर
एक पल की एक गफलत ,पाताल तक ले जायेगी
शिखर पुरुष की भूल को ,जगती भुला ना पायेगी
7
बिखरी पडी दौलत जमीं पर , शिखर पर आकाश है
शिखर पर बस कपट धोखा ,जमी पर विश्वास है
यह शिखर का व्यामोह ,क्या क्या दिवस दिखलाएगा
जब चाह हो ना कोई होगा , किस काम ये तब आयेगा
-parmatm prakash bharill

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