उसर पडी उस भूमि में , मैंने बनाई क्यारियाँ
कुछ रोप डाले नन्हे से पौधे , बन गए हम बागबां
बहार के उस दौर में , उपवन ये बन गए चमन
हम फूलकर फिरते रहे , तुच्छ सा लगता गगन
भ्रम दूर हो जाता मगर , नहीं किसी का टिकता कभी
एक ना एक दिन तो , यथार्थ की जमीं पर आते सभी
बहार यदि आयी है तो , पतझार भी आनी ही थी
मैं तो नहीं कोई अजूबा , सबकी कहानी है यही
सब ख्वाब अरमां एक पल में , धराशयी हो गए
पतझार ऐसी एक आयी , ठूंठ से हम रह गए
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