फर्क फर्स्ट एवं सेकण्ड क्लास का -
एक बार मैं बम्बई में लोकल ट्रेन में यात्रा कर रहा था ,भीड़ बहुत थी और तब भी हर स्टेशन पर नये- नये लोग चड़ते ही जा रहे थे ,परेशान से होकर मेरे बगल में खड़े एक सज्जन बोले " फर्स्ट और सेकण्ड क्लास में कोई फर्क ही नहीं रह गया है "
मैंने कहा "फर्क है "
-एक तो फर्स्ट क्लास में लोग अंगरेजी में गाली देते हें सेकण्ड क्लास में शुद्ध देशी भाषा में .
-दूसरा सेकण्ड क्लास में लोगों के शरीर से शुद्ध पसीने की गंध आती है ,फर्स्ट क्लास में कहीं कहीं परफ्यूम की मिलावट होती है
-सेकंड क्लास में व्यक्ति खुद चड़ने के बाद प्रयास करता है की अन्य भी अधिकतम लोग चढ़ जाएँ ,वह उन्हें जगह देता है ,कई लोग उन्हें पकड़कर अन्दर खीचने का प्रयास करते देखे जा सकते हें .
फर्स्ट क्लास के लोग बस इसी प्रयास में लगे रहते हें की दूसरा न चढ़ जाए/ पाए .
और भी कई बातें हें -
अमूमन यदि कोई किसी से उलझ पड़े तो फर्स्ट क्लास के लोग मुफ्त के तमाशवीन बन कर खड़े रहते हें जबकि सेकण्ड क्लास के लोग उन्हें शांत करने के प्रयासों में जुट जाते हें .
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
५ जुलाई २०११
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