लोग कहते हें क़ि-
" जैसे को तैसा "
मेरा कहना है क़ि नहीं , ऐसा नहीं होना चाहिए .
यदि आपने वैसा ही किया तो आप भी उस जैसे हो गए , तब आपकी परम्परा का क्या होगा , आपके आदर्श का क्या होगा ?
आपने उसके जैसा किया फिर वह दुबारा आपकी इस करतूत का जबाब उसी तरह से देगा तो यह़ी परम्परा चल निकलेगी .
आपने उसकी बदी का जबाब बदी से दिया और फिर उसने पलट्बार किया तो बदी की ही परम्परा तो चल पड़ेगी ना ?
तब दोनों ही एक मार्ग पर चल पड़ेंगे .
तब कैसे पता चलेगा क़ि सही मार्ग क्या है और गलती की शुरुवात किसने की , कहाँ से हुई ?
यदि आप मानते हें क़ि आपका ही मार्ग सही है और चाहते हें क़ि आपकी ही परमपरा चले तो हर स्थिति का सामना अपने तरीके से ही कीजिये .
अपने विरोधी के फोलोवर मत बनिए .
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