Thursday, December 8, 2011

यदि हमसे कोई अपराध बन ही पड़ा है तो तुरंत माफी मांगकर उसपर पानी फेर देना ही उचित है .यह हमारे ही हित की बात है


यदि हमसे कोई अपराध बन ही पड़ा है तो तुरंत माफी मांगकर उसपर पानी फेर देना ही उचित है .यह हमारे ही हित की बात है .

जब हम किसी के प्रति कोई अपराध करते हें तो हम भयभीत हो जाते हें क़ि अब वह हमसे बदला लेगा, इस डर से हम निरंतर चिंतित रहते हें .
उससे अपने अपराध की माफी मांगने पर हम भय मुक्त हो जाते हें, हमारी चिंता ख़त्म हो जाती है .
यदि माफी मांगने पर भी कोई हमें माफ़ भी करे तो भी उसकी शत्रुता की तीव्रता ख़त्म हो जाती है ,वह घातक नहीं रहती .
मजबूत से मजबूत सुरक्षा कवच हमें उस तरह से भयमुक्त नहीं कर सकता है ,जो काम माफी कर सकती है क्योंकि माफी हमें सिर्फ एक से मांगनी है जबकि सुरक्षा का हम कितना ही चौतरफा इंतजाम करलें तबभी कहीं कहीं कोई कोई  कसर रह ही जायेगी,और वही घातक हो सकती है .
माफी मांगने की स्थिति में कोई और हमारा नुकसान करे या करे पर स्वयं हमारा अपराधबोध ही हमें परेशान करता रहेगा , अन्दर ही अन्दर खोखला करता रहेगा.
यदि हमसे कोई अपराध बन ही पड़ा है तो तुरंत माफी मांगकर उसपर पानी फेर देना ही उचित है .यह हमारे ही हित की बात है .

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