Friday, December 16, 2011

,वे तो मजबूरी में दौड़ रहे थे और ये देखादेखी दौड़ पड़े -


जिन लोगों की स्वयं की कोई चाह नहीं भी होती है  और वे चैन के साथ अपना जीवन जी सकते हें वे भी दूसरों को दौड़ता देखकर अपना जीवन निरर्थक समझने लगते हें और दौड़ में शामिल होकर अपना जीवन बर्बाद कर देते हें ,वे तो मजबूरी में दौड़ रहे थे और ये देखादेखी दौड़ पड़े -

बिखरे पड़े अवसर अनेकों 
उनको लुभाने दीजिये 
मुझको न रुचता ये कभी 
मुझ पर भरोसा कीजिये 

कितने तो दौलतमंद देखे 
अथाह देखी दौलतें 
इनका कहो मैं क्या करूंगा
किसी के काम आने दीजिये 

न कोई शिकवा कीजिये 
न कभी ताने दीजिये 
अपनी तरह से जिन्दगी , 
हमको बिताने दीजिये .

1 comment:

  1. कितने तो दौलतमंद देखे
    अथाह देखी दौलतें
    इनका कहो मैं क्या करूंगा
    किसी के काम आने दीजिये

    न कोई शिकवा कीजिये
    न कभी ताने दीजिये
    अपनी तरह से जिन्दगी ,
    हमको बिताने दीजिये ....वाह!...आत्म सुख ,आत्म संतोष को पाने के बाद की अवस्था में लिखे जा सकते है ये शब्द.......

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