Saturday, December 17, 2011

क्या आज हम कुछ और हें , कल हमीं कुछ और थे


हाँ ! आज तो हम हें जुदा , पर क्या सदा से गैर थे 
क्या आज हम कुछ और हें , कल हमीं कुछ और थे 
बीत जाते दौर पर , कायम रहें ये दूरियां 
प्रत्येक डग से जो कटें , वे फासले कुछ और थे 

No comments:

Post a Comment