मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
Sunday, December 18, 2011
Parmatm Prakash Bharill: भीड़ आवेग से नियंत्रित होती है , उसके सामने तर्क ब...
Parmatm Prakash Bharill: भीड़ आवेग से नियंत्रित होती है , उसके सामने तर्क ब...: भीड़ के अपने तर्क होते हें , अपनी मानसिकता होती है और भीड़ उन्हीं के अनुसार चलती है , भीड़ की मानसिकता को जो समझ जाता है वह नेता बन जाता है...
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