Thursday, March 8, 2012

क्यों ना हम स्वीकार करें , जो जैसा जब हो परिणमन , तभी सुखी हो जायेंगे , नहीं रहेगा कोई गम


क्यों ना हम स्वीकार करें , जो जैसा जब हो परिणमन 
तभी सुखी हो जायेंगे , नहीं रहेगा कोई गम 

जो होना ना , ना होता 
जो होना हो , हो जाता है 
जिसको मिलना निश्चित 
पा लेता बो 
जिसका खोना , खो जाता है 

हम हर्षित होते उसमें 
जो भी हमको भाता है 
और दुखी हो जाते 
यदि न हमें सुहाता है 

इस जग में सारे परिणमन 
स्वत: समय पर होते हें 
तब क्यों कर कभी हरखते 
कभी दुखी हो रोते हें 

क्या हम कुछ भी छोटा सा 
परिवर्तन जग में कर सकते 
या होने वाले परिवर्तन में 
कुछ परिवर्तन कर सकते 

क्या हमारी मन्नत पर 
कोई भी ऐसा कर सकता 
यदि वह ऐसा कर दे तो 
क्या सब को संतुष्टी दे सकता 

सब ही तो भगवन के वन्दे हें 
पर सब की चाहत है जुदी जुदी 
रे स्वयं हमारी ही चाहत भी 
क्या सदा ही एक रही 

तब वह गाड , खुदा , अल्ला , भगवन 
किसकी सुनले , किसको भूले 
वह स्वयं दुखी हो जाएगा 
बस असमंजस में झूले 

यदि कुछ है उसके हाथों में 
उपाय एक ही हो सकता 
सबकी चाहत ही वह एक बनादे 
तब नहीं दुखी कोई होगा 

पर अब तक जग ऐसा कुछ भी 
ना हुआ , कभी ना होयेगा 
फिर कब तक दुखी रहेगा तू 
यूं व्यर्थ ही रोयेगा 

क्यों ना हम स्वीकार करें 
जो जैसा जब हो परिणमन 
तभी सुखी हो जायेंगे 
नहीं रहेगा कोई गम 

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