पंचकल्याणक अतिशय सफलता के साथ सानन्द संपन्न हुआ . क्या अपने इस जीवन में फिर कभी ऐसा अवसर आयेगा ?
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल
21 फरवरी को गर्भ कल्याणक की पूर्व क्रिया का पहिला ही दिन था और आत्मार्थियों के टोलों का आगमन प्रारम्भ हो गया था , इनमें वे लोग तो थे ही जिनके आगमन की पूर्व सूचना थी पर उनसे ज्यादा ऐसे लोग थे जिन्होंने कभी कोई सूचना ही नहीं दी थी और यह़ी क्रम अंतिम दिन २६ फरवरी तक जारी रहा . अंतिम दिनों में जब हमारी टीम लोगों के प्रस्थान की तैयारियों के लिए तत्पर थी उस समय भी जाने वाले लोग कम और आने वाले लोग ज्यादा थे .
बस लोग तो खिंचे चले आरहे थे आखिर क्यों न आते उनके डाक्टर साहब के यहाँ पंचकल्याणक है उन डाक्टर साहब के यहाँ जो उनके एक आमंत्रण पर उनके यहाँ आ गये थे और उनका कार्यक्रम सफल कर दिया था . अरे सूचना देने की क्या जरूरत थी ? उनकी पहुँच तो सीधी डाक्टर साहब तक है , उनकी व्यवस्था कैसे नहीं होगी ? और फिर यह तो आदर्श पंचकल्याणक है इसमें भला कैसे नहीं आते ? भले ही बच्चों की परीक्षाओं का समय है पर फिर ऐसा पंचकल्याणक कब देखने को मिलता ? वैसे भी यह तो हलबाई के यहाँ शादी है , जो हलवाई जीवन भर दूसरों के यहाँ शादी में लाजबाब मिठाइयां बनाकर खिलाता रहा उसके घर की शादी की मिठाइयां कैसी होंगी ?
कारण अनेक थे पर बस लोग खिंचे चले आरहे थे .
यह अनुमान तो पहिले ही था क़ि आशा से अधिक लोग आयेंगे पर अधिक से भी अधिक आयेंगे यह कल्पना नहीं थी .
२७-२८ वीघा क्षेत्र में बसी अयोध्या नगरी में स्थित विशाल पंडाल कार्यक्रम के अंतिम दिन तक भी पूरा भरा रहा ,छलकता रहा .
दिन में ७-७ घंटे , समागत विद्वानों के , गूढ़ तत्वचर्चा से सरावोर प्रवचन , दिन में २ ब़ार CD के माध्यम से पूज्य गुरुदेव श्री कानजी स्वामी के प्रवचन , पर लोग तो हिलने का नाम ही न लेते थे , इतने पर भी विल्कुल pin drop silence .
जल्दी सुबह से प्रारम्भ होकर लगातार सारे दिन तक चले कार्यक्रमों में भाग लेने के बाबजूद संध्याकाळ होने बाले डाक्टर साहब के पंच्कल्यानाकों के स्वरुप होने वाले प्रवचनों के लिए लोग सदा ही लालायित ही बने रहे , सभी की एक ही प्रतिक्रया थी क़ि ऐसी व्याख्या तो हने कभी सुनी ही नहीं .
पंडाल में अन्य कार्यक्रम भी इतने आकर्षक और गठीले रहे क़ि एक मिनिट भी छोड़ने देने को मन नहीं मानता था . गठीले तात्विक संवाद , स्पष्ट और प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण , मन मोहक वातावरण व साज सज्जा , सब कुछ लाजबाब .
ऋषभकुमार के वैराग्य और निर्ग्रन्थ संतों की भक्ति से सम्बन्धित ,प्रासंगिक भक्ति गीतों पर जन गण मन भक्ति अतिरेक में झूम उठा , मुनिराजों की ऐसी भक्ति , उनका ऐसा उत्कृष्ट वैराग्य , ऐसा स्वरुप ? एक ही फीलिंग " हमने तो यह सब देखा सुना ही नहीं ."
असाधारण रूप से विशाल मंच पर इन्द्र सभाओं और राज सभाओं के गरिमामय द्रश्य बस देखते ही बनते थे . जिन लोगों को इन्द्र और राजा बनने का सौभाग्य मिला उन्होंने तो अपने आप को धन्य माना ही पर जिन्हें यह अवसर न मिल सका उन्होंने भी अपने आप को तन्मय कर लिया , आत्मसात कर लिया .
मुनिराज ऋषभकुमार के अहारदान का अभूतपूर्व द्रश्य तो बस देखते ही बनता था , खचाखच भरा पांडाल पर एक दम शांत मंच से मात्र नवकार ध्वनि और इस सब के बीच अनुशासन बद्ध तरीके से मुनिराज ऋषभदेव को ३२ कौर का प्रथम आहार .
पंचकल्याणक में अपरिहार्य के अलावा कोई अधिक वोलियाँ नहीं होंगी यह तो पूर्व घोषित था ही पर महाविद्यालय के माध्यम से शास्त्री विद्वान तैयार करने की योजना सुनकर तो मानो लोग सहयोग करने के लिए उमड़ ही पड़े .
७ दिन तक चले इस विशाल आयोजन की एक विशेषता यह भी रही क़ि इतने विशाल जन समुदाय के एकत्रित होने के बाबजूद एक भी छोटी या बड़ी अप्रिय घटना नहीं घटी .
इतना विशाल आयोजन पर असंतोष का कोई शब्द सुनाई नहीं देता था , इतनी सुन्दर व्यवस्था पर कोई व्यवस्थापक दिखाई नहीं देता था .
सारे विश्व से लोग आये और जो न आसके उन्होंने ustream पर घर बैठे यह आयोजन live देखा .
लोग कहते सुने गए क़ि " डाक्टर साहब अच्छा प्रवचन करते हें यह तो मालूम था , अच्छा लिखते हें यह तो जग जाहिर है , अच्छे शिविर लगाते हें यह तो किसी से छुपा नहीं है पर इनता विशाल आयोजन , इतने सुन्दर और व्यवस्थित तरीके से सफलता पूर्वक कर सकते हें यह मालूम न था "
और अंतिम दिन एक विशाल पर शांत कारबां चल पडा प्रतिष्ठा स्थल भवानी निकेतन से टोडरमल स्मारक भवन की ओर जहाँ प्रतिष्ठित प्रतिमाओं को बिराजमान किया जाना था .
अनुपम द्रश्य था वह मनोहारी , निर्विकार वीतरागी जिन प्रतिमाओं की तीन मूर्ती जिनालय में स्थापना , एक ऐतिहासिक क्षण .
क्या अपने इस जीवन में फिर कभी ऐसा अवसर आयेगा ?
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