Monday, March 19, 2012

Parmatm Prakash Bharill: क्या यह़ी नियति है जीवन की , अब तक समझ न पाया म...

Parmatm Prakash Bharill: क्या यह़ी नियति है जीवन की , अब तक समझ न पाया म...: मर मर कर हम कुछ दिन जी लें , फिर इक दिन मर जाने में  क्या यह़ी नियति है जीवन की , अब  तक  समझ  न पाया मैं सोना-उठना,कमा-धमा कर,खाना-पीना,थ...

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