क्यों नहीं कोई दूसरे के जूते में अपना पाँव डालकर यह जाने की कोशिश करता है क़ि उस पर क्या गुजर रही है -
जब हमें लाख रूपये की जरूरत होती है और हम सोचते हें क़ि ये सामने वाला ये एक लाख रूपये मुझे क्यों नहीं दे देता , उसे तो इनकी इतनी जरूरत भी नहीं है और ये पाकर मैं भयंकर संकट से निकल सकता हूँ . पर ठीक उसी समय हम ही कहाँ उस भिखारी को १०-२० रूपये दे देते हें जो भयंकर भूंख से तड़पता हुआ हमसे भोजन करवाने की गुहार करता है , हालांकि हमारे लिए भी उन १०-२० रूपये की कोई अहमियत ही नहीं .
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