मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
Saturday, May 5, 2012
Parmatm Prakash Bharill: उसी पल हम स्वयं इतने निर्दय होते हें क़ि अपनी एक प...
Parmatm Prakash Bharill: उसी पल हम स्वयं इतने निर्दय होते हें क़ि अपनी एक प...: जिस पल हम भयंकर भूंख से त्रस्त होते हें और सामने वाले से उदारता की अपेक्षा करते हुए चाहते हें क़ि वह सम्मान पूर्वक हमें हमारा रुचिकर भोजन क...
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