Saturday, June 23, 2012

अरे सिर्फ मनुष्य के ही नहीं , पता नहीं कहाँ-कहाँ हो आया है ऐसे ही गौरव के साथ , अब आज तो उन सब पर्यायों के नाम लेने में भी लज्जा आती है . ऐसे इस कुल-वंश के नाम पर इस आत्मा को (अपने आप को ) वलिदान कर देता है तू , अविवेकी !

लोक के अनन्त जीवों में से यह आत्मा कहाँ से आया है और मर कर कहाँ चला जाएगा यह बात कौन जानता है ? 
फिर भी अपने कुल और वंश के नाम पर मरा जाता है , अरे ! ऐसे न जाने कितने कुल और वंश धारण किये हें तूने और फिर बदल जाता है , भूल जाता है .
अरे सिर्फ मनुष्य के ही नहीं , पता नहीं कहाँ-कहाँ हो आया है ऐसे ही गौरव के साथ , अब आज तो उन सब पर्यायों के नाम लेने में भी लज्जा आती है .
ऐसे इस कुल-वंश के नाम पर इस आत्मा को (अपने आप को ) वलिदान कर देता है तू , अविवेकी !



----------------to read in full , pls click the link bellow -

http://www.facebook.com/pages/Parmatmprakash-Bharill/273760269317272

No comments:

Post a Comment