Thursday, June 28, 2012

तू समाज का नेता बन गया ? " करेला नीम चढ़ गया " अब क्या होगा ? अब तू कब सीखेगा , कब सुधरेगा ? अब तू सीखेगा कैसे ? तूने तो समाज को सिखाने का ठेका ले लिया है .

तू समाज का नेता बन गया ? " करेला नीम चढ़ गया "
अब क्या होगा ? अब तू कब सीखेगा , कब सुधरेगा ?
अब तू सीखेगा कैसे ?
तूने तो समाज को सिखाने का ठेका ले लिया है .
अब तू धर्म सभा में जाता तो है पर सीखने के लिए नहीं , सिखाने के लिए .
जाकर कहता है " यूं मैं धर्म के बारे में कुछ समझता तो नहीं हूँ ,पर फिर थोड़ा आपको समझाने की कोशिश करूंगा "
भगवान भला करे इनका और वेचारे समाज का 
जो खुद कहता है क़ि मैं कुछ समझता नहीं हूँ वह समझाने चला है , ऐसों से समझने वालों का क्या होगा ?
अरे नहीं समझता है तो बैठ ! सुन , सीखले !
हें न इतने संत और विद्वान सिखाने और समझाने के लिए !
पर कहाँ ?
इससे पहिले क़ि विद्वानों का बोलने का नंबर आता है ये तो चले जाते हें अगली किसी सभा में सिखाने के लिए .
अरे ! यूं भी तेरे जैसे अभागे को सिखाने का भाव भी किसे आता है ?
सभी बस इसी चक्कर में रहते हें क़ि किसी भी तरह नेताजी को बहला फुसलाकर अपना काम निकाल लें .
या तो सभी तेरे से डरने लगते हें या आशा और लोभ के वशीभूत होकर सच्ची बात कहने का साहस नहीं कर पाते हें , फिर तुझे सत्य के दर्शन होंगे कैसे ?
सभी तुझे झूंठी प्रशंसा करके मान के शिखर पर चडा देते हें , तुझे आइना कौन दिखलाएगा .
आखिर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे ?
अब तो तू अपने को ज्ञानी समझने लगा है , तुझे तेरे अज्ञान का ज्ञान कौन कराएगा ?
क्या अब तेरा यह दुर्लभ मानव जीवन व्यर्थ ही नहीं चला जाएगा ?
अरे यदि कोई साहस भी करे तो तुझे फुर्सत ही कहाँ है उनकी बात सुनने की ?
और फिर क्या तू उनकी बात पचा भी पायेगा ?
जहां एक ओर सारी दुनिया तेरे गुणगान करती हो वही दूसरी ओर ज्ञानी का करुण संबोधन -
" रे मूढ़ ! मिथ्याद्रष्टि ! "

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