हमारा व्यवहार वाणी से कहीं बहुत अधिक सशक्त माध्यम है अपने मनोभावों के सम्प्रेषण का .
लोग हमारी बातों को भी सुनते हें और व्यवहार को भी देखते हें और दोनों के बीच अंतर को बड़ी आसानी से पढ़ लेते हें .
वे यह भी जानते हें क़ि आप जो बात वाणी से बोल रहे हें वह है जैसे आप दिखना चाहते हें और हकीकत वह है जो आपके व्यवहार में लक्षित हो रही है .
किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए क़ि कोई उनके मनोभावों को समझ नहीं सका है , वह तो प्रकट हो ही जाता है , कभी जल्दी ही कभी कुछ देर से .
लोग हमारी बातों को भी सुनते हें और व्यवहार को भी देखते हें और दोनों के बीच अंतर को बड़ी आसानी से पढ़ लेते हें .
वे यह भी जानते हें क़ि आप जो बात वाणी से बोल रहे हें वह है जैसे आप दिखना चाहते हें और हकीकत वह है जो आपके व्यवहार में लक्षित हो रही है .
किसी को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए क़ि कोई उनके मनोभावों को समझ नहीं सका है , वह तो प्रकट हो ही जाता है , कभी जल्दी ही कभी कुछ देर से .
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