Monday, July 16, 2012

तू भगवान का भक्त है या भोगों का भिखारी ------- तू सच्चा उपासक तो उस वस्तु का है जिसके लिए तू कुछ भी करने को तैयार है और दिन रात उसीके ध्यान में लीन रहता है . सचमुच तो तू भक्त नहीं भोगी है .

 तेरे मन में एक वस्तु को पाने की चाहत होती है और उसे पाने के लिए तू भगवान से मन्नत मागता है .
मन्नत मागने के लिए जब तू मंदिर की तरफ जा रहा होता है तो तेरे चित्त में किसका ध्यान होता है , भगवान का या वस्तु का ?
जब तू भगवान के सामने खड़े होकर ध्यान कर रहा होता है तो ध्यान का ध्येय क्या होता है , भगवान या वह वस्तु ?
अरे तू भ्रम में है !
तू अपने आप को भगवान का बहुत बड़ा भक्त मानता है और कहता भी फिरता है , पर ज़रा अपने चित्त को टटोल ; तू भगवान का भक्त है या भोगों का भिखारी .
तेरा ध्यान तो सदा उस वस्तु की ओर ही लगा रहता है , भगवान से तो तू जब देखो तब कुछ न कुछ माँगता ही रहता है , बिना मांगे तो कभी भगवान के मंदिर से तू लौटा ही नहीं .
क्या तूने कभी जाना है क़ि भगवान कौन हें , क्या हें ?
क्या तू यह समझ सका क़ि भक्ति किसे कहते हें और कैसे की जानी चाहिए ?
पर तुझे तो शिवाय मागने के भगवान से कोई काम ही नहीं है , कोई सारोकार हे नहीं है .
क्या लगता है , मेरी बात स्वीकार नहीं है ?
अच्छा बतला , क्या तेरे घर के पास उन्हीं भगवान का मंदिर नहीं है ?
वहां तो कभी फटकता भी नहीं है और वहां दूर उन्हीं भगवान के मंदिर पर जाता है , किसी खास दिनपर , फिर घंटों तक लाइन में लग़ कर दर्शन का इन्तजार करता है .
किसलिए ?
क्या भगवान की भक्ति के लिए ?
या मन्नत के लिए ?
अब तू ही बतला जब तू कई घंटे लाइन में खडा अपनी बारी आने का इन्तजार कर रहा था तब तेरे चित्त में किसका ध्यान चल रहा था , भगवान का या मन्नत का ?
फिर क्यों अपने आप को भगवान का भक्त कहता और मानता है ? क्यों अपने आप को धोखा देता है ?
भोगों की भीख मागने जाता है और अपने आपको सबसे बड़ा भक्त मानता है , समझता है जैसे क़ि मरने के बाद स्वर्ग में रेड कारपेट वेलकम मिलेगा .
अगर तू भक्त ही है तो भगवान कम तो नहीं हें , मात्र एक दो तो नहीं हें , वे तो अनेकों हें , तू उन सबके दर्शन कहाँ करता है ?
तू तो सिर्फ उनके पास जाता है जिनके बारे में मशहूर है क़ि वे इक्षा पूरी कर देते हें .
उन भगवान के भी किसी विशेष मंदिर में ही जाता है , किसी विशेष मूर्ती के ही दर्शन करता है वह भी किसी विशेष दिन ही .
ऐसा क्यों ?
क्या किसी विशेष मंदिर में , किसी विशेष दिन वे भगवान विशेष होते हें व अन्यत्र नहीं ?
भगवान में क्या अंतर है ? फिर ऐसा क्यों ? क्या इसी का नाम भक्ति है ?
अरे वही वस्तु तुझे कोई और देने का आश्वासन दे दे तो तू भगवान को छोड़कर उसके पीछे हो लेगा . अरे ! तू सच्चा उपासक तो उस वस्तु का है जिसके लिए तू कुछ भी करने को तैयार है और दिन रात उसीके ध्यान में लीन रहता है .
सचमुच तो तू भक्त नहीं भोगी है .
अपने अंतर को टटोल !
भ्रम में जीना बंद कर !
सच्ची समझ से ही तेरा कल्याण होगा .

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