Sunday, September 23, 2012

दुनिया सत्य वचन को धर्म मानती है , पर वचन सत्य हो ही नहीं सकते . सत्य सम्पूर्णता में है , आंशिक कथन सम्पूर्णता को प्रतिबिंबित नहीं करता है इसलिए सत्य हो ही नहीं सकता है , और हमेशा ही सम्पूर्ण कथन किया नहीं जा सकता है .

उत्तम सत्य धर्म -
दुनिया सत्य वचन को धर्म मानती है , पर वचन सत्य हो ही नहीं सकते .
सत्य सम्पूर्णता में है , आंशिक कथन सम्पूर्णता को प्रतिबिंबित नहीं करता है इसलिए सत्य हो ही नहीं सकता है , और हमेशा ही सम्पूर्ण कथन किया नहीं जा सकता है .
इसलिए सत्य वस्तु में है , वक्ता के अभिप्राय में है और श्रोता की समझदारी में है .
यदि वक्ता का अभिप्राय कुछ और है तथा श्रोता का अभिप्राय कुछ और , तब जो कुछ कहा गया है वह नहीं समझा जाएगा , जो समझा जाएगा वह तो कहा ही नहीं गया था , ऐसे में सत्य का लोप हो गया है और असत्य का अवतरण भी .
अब प्रश्न यह उठता है क़ि इस असत्य का कर्ता कौन है , असत्य भाषी कौन है ? 
यह भी हो सकता है क़ि कहने बाले ने जिस अपेक्षा से कहा वह भी सत्य है और सुनने वाले ने जिस अपेक्षा से समझा उसकी अपेक्षा भी सत्य है , अब और भी विचित्र परिस्थिति खड़ी हो गई ; जो कहा गया था वह समझा नहीं गया है , जो समझा गया है वह कहा नहीं गया था पर सत्य दोनों ही हें .
एक ही सबाल के कितने भिन्न-भिन्न जबाब हो सकते हें और वे भी सभी सही ( उनकी सत्यता को चुनौती नहीं दी जा सकती है ) यह बात निम्नांकित उदाहरण से भलीभांति समझी जा सकती है -
हम सभी व्यापारी हें , व्यापार में लागत ( cost ) का बड़ा महत्त्व होता है , जो व्यक्ति लागत गिनना नहीं जानता है वह व्यापार में कमा कैसे सकेगा ? वह समझेगा क़ि मैं कमा रहा हूँ पर बर्ष के अंत में जब हिसाब गिनेगा तो घाटा निकलेगा .
चलिए देखते हें क़ि किसी वस्तु की लागत किस प्रकार से गिनी जा सकती है या गिनी जानी चाहिए -
a-क्रय मूल्य ( buying cost ) +b- टेक्स + c-पेकिंग +d- ट्रांसपोर्ट + e-स्टोरेज + f-छीजत (depreciation) + g-इंटरेस्ट +h- बिजनेस रनिंग एक्स्पेंसिस = लागत मूल्य ( cost price ).
a-१०० + b- १० + c-१ +d- .५० + e- .२५ + f-.5.00 + g- ३% + h - १०% 
यानिक़ि जो वस्तु १०० रूपये में खरीदी गई है वह लगभग १३० रूपये तो घर में कोस्ट करती है .
उक्त सभी वस्तुएं यथार्थ हें और इन सबको जोड़ने के बाद वस्तु यदि अधिक भाव से बिक़े तो फायदा होगा अन्यथा नुकसान और फायदा कमाने के लिए व्यापार करते वक्त तो इन सभी को जोड़ना ही चाहिए ; पर यदि क्लियरेंस सेल करना हो तब ?
तब क्या करें ?
यदि इन सभी को जोड़ने बैठे तब तो सारा माल जल्दी से बिक नहीं जाएगा तब इनमें से एक -एक करके फेक्टर गिनना छोड़ देते हें तब कम कीमत पर माल बेचने पर भी फायदा नजर आने लगता है , जैसे क़ि रनिंग एक्सपेंस को क्यों गिनें , यदि हम यह माल खरीदते या न खरीदते पर वह खर्चा तो होना ही था ---- और ऐसे ही अनेकों तर्क .
अरे कभी कभी तो यह नौबत भी आ सकती है क़ि हम चाहेंगे क़ि कोई यह माल मुफ्त में ही लेजाये तो (मुनाफ़ा) अच्छा है क्योंकि अन्यथा मुझे तो इसे फिकबाने के भी पैसे खर्च करने पड़ेंगे .
अरे ! कभी कभी तो पड़े पड़े माल की कोस्ट बढ़ने की बजाय घटने लगती है . कैसे ?
यदि माल एक डालर में खरीदा हो व जब खरीदा था तब डालर की कीमत ५५ रूपये थी और अब आज डालर की कीमत ५० रूपये रह गई है तो कल जो माल ५५ रूपये कोस्ट करता था आज ५० रुपया कोस्ट करने लगेगा .
अब यदि कोई व्यापारी यदि यह कहता है क़ि यह तो मेरी कोस्ट है तो वह सत्य बोल रहा है या गलत ? वह १० अलग-अलग फिगर बोले तब भी वह सही भी है और तब भी उसका हर फिगर गलत भी  है .
इस प्रकार हम देखते हें क़ि वस्तु स्वरूप में अनेक अपेक्षाएं विद्यमान होती हें जो क़ि कथन में एक साथ समाहित नहीं हो सकती हें और इसलिए कथन अपूर्ण होने से सत्य नहीं हो सकता है .

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