Monday, February 18, 2013

तब फिर किसी को होशियार बनाने का प्रयत्न कर , बुद्धू बनाने का प्रयत्न करके स्वयं एक बुद्धू का (शिल्पी) कर्ता क्यों बनता है ?

जब आप किसी को बुद्धू बनाते हें तो स्वयं बुद्धू बन जाते हें क्योंकि आप यह मान बैठते हें की आपने उसे बुद्धू बना दिया , दरअसल तो आप बुद्धू हें क्योंकि आप यह मानते हें की किसी को बुद्धू बनाया जा सकता है .
किसी के बनाने से कोई बुद्धू नहीं बनता है (स्वयं बने -बनाए हों वह अलग बात है ) .
सामने वाले को आगे -पीछे या तत्काल यह समझ में आ ही जाता है कि हकीकत क्या है और उसे क्या दिखाने का प्रयास किया जा रहा है .
अरे भले आदमी ! यदि तू कोई रचना करता है तो तू क्या चाहता है ?
यही न ! की तेरी रचना उत्कृष्ट हो , सुन्दर हो ?
तब फिर किसी को होशियार बनाने का प्रयत्न कर , बुद्धू बनाने का प्रयत्न करके स्वयं एक बुद्धू का (शिल्पी) कर्ता क्यों बनता है ?

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