मेरा चिंतन मात्र कहने-सुनने के लिए नहीं, आचरण के लिए, व्यवहार के लिए है और आदर्श भी. आदर्शों युक्त जीवन ही जीवन की सम्पूर्णता और सफलता है, स्व और पर के कल्याण के लिए. हाँ यह संभव है ! और मात्र यही करने योग्य है. यदि आदर्श को हम व्यवहार में नहीं लायेंगे तो हम आदर्श अवस्था प्राप्त कैसे करेंगे ? लोग गलत समझते हें जो कुछ कहा-सुना जाता है वह करना संभव नहीं, और जो किया जाता है वह कहने-सुनने लायक नहीं होता है. इस प्रकार लोग आधा-अधूरा जीवन जीते रहते हें, कभी भी पूर्णता को प्राप्त नहीं होते हें.
Monday, February 18, 2013
Parmatm Prakash Bharill: तब फिर किसी को होशियार बनाने का प्रयत्न कर , बुद्ध...
Parmatm Prakash Bharill: तब फिर किसी को होशियार बनाने का प्रयत्न कर , बुद्ध...: जब आप किसी को बुद्धू बनाते हें तो स्वयं बुद्धू बन जाते हें क्योंकि आप यह मान बैठते हें की आपने उसे बुद्धू बना दिया , दरअसल तो आप बुद्धू हे...
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