Tuesday, February 19, 2013

यदि न्यायाधीस दंड दे तो दंड कहलाता है और यदि कोई और ऐसा करे तो वह अपराधी कहलाता है .

यदि किसी के एक दुर्गुण के कारण तू उसके साथ दुर्व्यवहार करता है तो क्या तुझे स्वीकार है की ऐसे ही दुर्गुण के लिए तेरे साथ भी ऐसा ही दुर्व्यवहार किया जाबे ?
क्योंकि सर्वथा गुणवान तो कोई है नहीं , किसी में एक दोष है तो किसी अन्य में दूसरा .
फिर दण्डित करने वाला तू कौन होता है ?
क्या तुझे मालूम नहीं कि यदि न्यायाधीस दंड दे तो दंड कहलाता है और यदि कोई और ऐसा करे तो वह अपराधी कहलाता है .
अरे ! न्यायाधीश तो अपराध के अनुपात में सजा देता है , वह भी अपराध साबित होने पर .
तू तो ककडी के चोर को कटार मारना चाहता है , वह भी वश अपनी कषाय के वशीभूत , बिना सफाई मांगे , बिना अपराध सिद्ध हुए .
अपने अपराधों को महिमामंडित करने की , अपनी कषाय को सिद्धांत का जामा पहिनाने की इस मानव की पुरानी आदत है ; पर यह पाखण्ड है .
हो सकता है तूस्व्यम अपनी इस दुश्प्रवत्ति से परिचित न हो .
यदि ऐसा है तो यह तेरा दूसरा अपराध है ; हाँ इसमें गलत क्या है ?
अज्ञान भी तो अपराध ही है न ?
क्या तूने कभी विचार किया की क्या तू भी ऐसे ही अनंत अपराधों का अपराधी नहीं है ?
तो क्या तेरे साथ भी यही सलूक किया जाबे ?
न्याधीश तो जिसको दण्डित करता है , उसको जानता तक नहीं , उसका फैसला राग-द्वेष से नहीं यथार्थ से प्रेरित होता है . क्या तेरे बारे में यह सत्य है ? नहीं न ?
ऐसे तो कितने अपराधी हें जिनके बारे में तुझे कोई परवाह ही नहीं . तू तो सिर्फ उसे सबक सिखाना चाहता है जिससे तुझे द्वेष है , इसलिए तू न्यायाधीश नहीं अपराधी है .
किसी को दण्डित करने या सबक सिखाने के नाम पर तू उसके साथ जो दुर्व्यवहार कर रहा है क्या वह अन्याय , अत्याचार और अपराध नहीं है ?
किसी ने किसी की पिटाई की है इस अपराध में तू उसे पीटेगा तो क्या उसकी पिटाई करने के अपराध में कोई और तुझे न पीटेगा ? और फिर उसे कोई और .
क्या इस तरह मारकाट का एक अनंत सिलसिला न चल निकलेगा ? अराजकता न मच जायेगी ?
क्या यह उचित है , सही है ?
यदि वह गलती पर है तो प्रकृति (वस्तुस्वरूप) तो उसे दण्डित करेगा ही , पर तुझे यह अधिकार किसने दिया है ?
फिर भी यदि तू ऐसा करता है तो क्या तू भी अपराधी नहीं है ? क्या इसके लिए तुझे दण्डित नहीं किया जाना चाहिए ?
तुझमें अन्य कोई दोष न भी सही , तेरा कोई अन्य अपराध न भी सही पर यह अपराध क्या कम है की तूने क़ानून अपने हाथ में लिया , वस्तु व्यवस्था में हस्तक्षेप करने की कोशिश की है ?
न्यायाधीस के आदेश पर पुलिस को यह अधिकार है की वह किसी को कैद में रखे , यह उसका अधिकार ही नहीं , कर्तव्य भी है और वह ऐसा करने के लिए बाध्य भी है पर क्या तू किसी ऐसे ही अपराधी को अपने मन से कैद में रख सकता है ?
क्या तुझे ऐसा करने का अधिकार , कर्तव्य या बाध्यता है ?
यदि तू किसी को कैद करेगा तो तेरा क्या होगा ?
क्या तू भी कैद नहीं कर लिया जाएगा ? क्या तू भी अपराधी नहीं बन जाएगा ?
अरे नादान ! बंद कर यह दूसरों को सबक सिखाने का गोरखधंधा !

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