हम मानते हें क़ि हमें मार्ग मिल गया है , हमें ही नहीं , हमारे पुरखों को भी .
जो लोग यह मानते हें क़ि हमें मार्ग मिल गया है उन लोगों की भी आज चौथी पीढी अवतरित हो चुकी है .
क्या आज यह प्रासंगिक नहीं है क़ि हम सभी इस बात की विवेचना करें क़ि हमने क्या पाया है , हमारे माता-पिता , दादा-दादी और पर दादा-दादी ने क्या पाया था और सारा जीवन बिताने के बाद वे अपने साथ क्या उपलब्धि हासिल करके ले गए ?
वे क्या कर पाए और क्या न कर पाए ?
यदि कुछ न कर पाए तो क्यों नहीं कर पाए ?
क्या हम भी उसी मार्ग पर तो नहीं हें ?
क्या हम भी वही गलती दोहरा तो नहीं रहे हें ?
क्या हम भी ऐसे ही खाली हाथ तो नहीं चले जायेंगे
क्या हम जो भी कर रहे हें वह पर्याप्त है ?
क्या हमें कुछ और विशेष करने की आवश्यकता नहीं है ?
तो हम यह विचार कब करेंगे ?
जो लोग यह मानते हें क़ि हमें मार्ग मिल गया है उन लोगों की भी आज चौथी पीढी अवतरित हो चुकी है .
क्या आज यह प्रासंगिक नहीं है क़ि हम सभी इस बात की विवेचना करें क़ि हमने क्या पाया है , हमारे माता-पिता , दादा-दादी और पर दादा-दादी ने क्या पाया था और सारा जीवन बिताने के बाद वे अपने साथ क्या उपलब्धि हासिल करके ले गए ?
वे क्या कर पाए और क्या न कर पाए ?
यदि कुछ न कर पाए तो क्यों नहीं कर पाए ?
क्या हम भी उसी मार्ग पर तो नहीं हें ?
क्या हम भी वही गलती दोहरा तो नहीं रहे हें ?
क्या हम भी ऐसे ही खाली हाथ तो नहीं चले जायेंगे
क्या हम जो भी कर रहे हें वह पर्याप्त है ?
क्या हमें कुछ और विशेष करने की आवश्यकता नहीं है ?
तो हम यह विचार कब करेंगे ?
No comments:
Post a Comment