" मुंडे-मुंडे मतिर्भिन्ना: "
जितने लोग ,उतने विचार
सब अपने आप में दृढ .
और हमें भी सब ही चाहिए भी .
माता - पिता
भाई - बहिन
पुत्र - पुत्री
पति - पत्नि
और इन सब से सम्बन्धित अन्य रिश्ते भी .
फिर मित्र
समाज ,आदि .
सबके अपने स्वभाव , सबके अपनी - अपनी मर्यादाएं , सबकी अपनी - अपनी रीति - नीति , सबकी अपनी शर्तें .
सबसे समझौता करना जरूरी .
हमें समझौता करने में ही सबसे ज्यादा तकलीफ होती है , हम झुकना ही तो नहीं चाहते , हम झुकना ही तो नहीं जानते .
पर झुके बिना कोई अन्य उपाय नहीं .
जितना ज्यादा समझौता , उतना ज्यादा दुःख दायक , पीड़ा कारक .
यदि इसीका नाम संसार है तो संसार में सुख कहाँ हो सकता है ?
फिर भी हमें संसार में ही सुख चाहिए .
क्या मिल सकेगा ?
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