क्या नाख़ून और बाल काटने में तथा हाथ पाँव काटने कोई फर्क नहीं है ?
तब शाकाहार और मांसाहार एक जैसे कैसे हो सकते हें ?
क्या मानव को मारना और किसी जानवर को मारना एक समान हो सकता है ?
तब पशु को मारकर खाना और शाक-भाजी खाना एक जैसा कैसे हो सकता है ?
क्या खून और पानी में कोई अंतर ही नहीं है ? कैसे आप किसी का बहता हुआ खून देख सकते हो ?
यदि हम सभी ( मानव और पशु ) एक ईश्वर की ही रचनाएं ह
तब शाकाहार और मांसाहार एक जैसे कैसे हो सकते हें ?
क्या मानव को मारना और किसी जानवर को मारना एक समान हो सकता है ?
तब पशु को मारकर खाना और शाक-भाजी खाना एक जैसा कैसे हो सकता है ?
क्या खून और पानी में कोई अंतर ही नहीं है ? कैसे आप किसी का बहता हुआ खून देख सकते हो ?
यदि हम सभी ( मानव और पशु ) एक ईश्वर की ही रचनाएं ह
ें तब हमारे बीच तो भाईचारे का रिश्ता हुआ , फिर हम यह क्या कर रहे हें ? क्या कोई माता -पिता अपने बच्चों को आपस में लड़ता देखकर संतुष्ट और प्रसन्न रह सकते हें ?
यदि हम और वे दोनों ही ईश्वर की ही कृति हें तो ईश्वर को यह कैसे मंजूर होगा क़ि हम उसी की अन्य रचना को नष्ट करें , क्या इससे वह कुपित न होगा ?
जो लोग शाकाहारी हें वे जीवन के किस क्षेत्र में औरों से पीछे हें ?
क्या वे इस पृथ्वी पर स्थित सर्वश्रेष्ठ मानव प्रजातियों में से एक नहीं हें ?
क्या वे जीवन के अधिकतम क्षेत्रों में अन्य सभी से आगे नहीं हें ?
क्या कहा ! यदि तू मांस नहीं खायेगा तो धरती पर भोजन की कमी हो जायेगी ?
क्या तू हर बात में इस बात की परवाह करता है ? क्या तूने कभी सोचा क़ि यदि तू यह नौकरी पा जाएगा तो कोई और इससे बंचित हो जाएगा ?
अरे ! तुझे इस बात की तो चिंता है क़ि औरों के लिए भोजन की कमी हो जायेगी , पर इस बात की चिंता नहीं है क़ि वेचारे कितने निरपराध , निरीह पशुओं की जान चली जायेगी ?
किसी का भूँखा रहना ज्यादा दुर्भाग्य जनक है या किसी की मौत ?
और फिर एक को कुछ बर्ष ज़िंदा बने रहने के लिए उसके जीवन भर में हजारों - लाखों पशुओं की वली ?
और फिर किसी के लिए कोई क्यों मरे ?
क्या आपको भी किसी के लिए स्वयं मरना मंजूर है ?
क्या यह उचित लगता है क़ि अब जो गाय दूध देने लायक नहीं रही , जो बैल काम करने के लायक नहीं रहा उसे मार डालना ही उचित है ?
बुढापे में मानव भी तो किसी काम का नहीं रहता है , कुछ उत्पादक तो करता नहीं है , देश का अनाज खाता है और सरकार की पेंशन , क्या उक्त तर्क उन पर लागू नहीं होगा ?
" उन " कौन ?
कोई अन्य नहीं ! हमारे अपने माता-पिता , हम स्वयं और आने वाले कल को हमारे ही बच्चे भी ; हम सभी " उन " में शामिल हें .
अरे भाई ! उक्त तर्क समाज के गले उतर गए तो एक दिन तुम्हें भी किसी के लिए मरना होगा .
क्या आपको मंजूर है ?
तब क्या विचार ( फैसला ) है आपका ?
यदि हम और वे दोनों ही ईश्वर की ही कृति हें तो ईश्वर को यह कैसे मंजूर होगा क़ि हम उसी की अन्य रचना को नष्ट करें , क्या इससे वह कुपित न होगा ?
जो लोग शाकाहारी हें वे जीवन के किस क्षेत्र में औरों से पीछे हें ?
क्या वे इस पृथ्वी पर स्थित सर्वश्रेष्ठ मानव प्रजातियों में से एक नहीं हें ?
क्या वे जीवन के अधिकतम क्षेत्रों में अन्य सभी से आगे नहीं हें ?
क्या कहा ! यदि तू मांस नहीं खायेगा तो धरती पर भोजन की कमी हो जायेगी ?
क्या तू हर बात में इस बात की परवाह करता है ? क्या तूने कभी सोचा क़ि यदि तू यह नौकरी पा जाएगा तो कोई और इससे बंचित हो जाएगा ?
अरे ! तुझे इस बात की तो चिंता है क़ि औरों के लिए भोजन की कमी हो जायेगी , पर इस बात की चिंता नहीं है क़ि वेचारे कितने निरपराध , निरीह पशुओं की जान चली जायेगी ?
किसी का भूँखा रहना ज्यादा दुर्भाग्य जनक है या किसी की मौत ?
और फिर एक को कुछ बर्ष ज़िंदा बने रहने के लिए उसके जीवन भर में हजारों - लाखों पशुओं की वली ?
और फिर किसी के लिए कोई क्यों मरे ?
क्या आपको भी किसी के लिए स्वयं मरना मंजूर है ?
क्या यह उचित लगता है क़ि अब जो गाय दूध देने लायक नहीं रही , जो बैल काम करने के लायक नहीं रहा उसे मार डालना ही उचित है ?
बुढापे में मानव भी तो किसी काम का नहीं रहता है , कुछ उत्पादक तो करता नहीं है , देश का अनाज खाता है और सरकार की पेंशन , क्या उक्त तर्क उन पर लागू नहीं होगा ?
" उन " कौन ?
कोई अन्य नहीं ! हमारे अपने माता-पिता , हम स्वयं और आने वाले कल को हमारे ही बच्चे भी ; हम सभी " उन " में शामिल हें .
अरे भाई ! उक्त तर्क समाज के गले उतर गए तो एक दिन तुम्हें भी किसी के लिए मरना होगा .
क्या आपको मंजूर है ?
तब क्या विचार ( फैसला ) है आपका ?
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