सरकार सबालों और जबाबदेही से परे नहीं है .
यदि CAG को हक़ नहीं क़ि वह नीतियों पर सबाल उठाये तो किसी को तो वह हक़ होना ही चाहिए .
वह हक़ है संसद को , विपक्ष को .
यूं तो सभी सांसदों को इस मामले में सजग रहना चाहिए , पर सत्तारूढ़ दल के सांसद कई कारणों से ऐसा नहीं करेंगे , पर विपक्ष को तो करना ही चाहिए , करना ही होगा .
कोयला खानों के आबंटन के मामले में विपक्ष को यह काम पहिले ही करना चाहिए था , पर वह चूक गया .
अब जब जाने - अनजाने CAG ने यह काम कर ही दिया है , तब यह विपक्ष का कर्तव्य है क़ि वह गलत नीतियों पर चर्चा करे ( चर्च न होने देना गलत है ) व उनमें सुधार करबाए .
यदि गलती हुई है तो उसमें सुधार किया ही जाना चाहिए , जब भी समझ में आबे , तब किया जाना चाहिए .
यह किसी व्यक्ति का नहीं , देश हित का मामला है .
सरकार व्यक्ति चलाते हें , व्यक्ति गलती कर सकते हें , उनकी गल्तियों का खामियाजा देश क्यों भुगते .
देश हित में , गल्तियों को सुधारा जाना आवश्यक है , इससे देश सजा पाने से बच जाएगा .
रही बात सजा मिलने की सो यदि किसी से गल्ती हुई है तो उसे गल्ती की सजा मिले और यदि किसी ने अपराध किया है तो उसे अपराध का दण्ड मिले .
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