उनके पाप पर तू क्यों आंसू बहाता है ?
तू व्यर्थ ही परेशान होता है और शोर मचाकर अन्यों को भी परेशान करता है .
अरे ! जो उन्हें मिला है वह तो उनके भाग्य में था इसलिए मिला है और जिस दिन पुण्योदय ख़त्म हो जाएगा उस दिन उसी प्रकार से चला भी जाएगा जिस प्रकार से आया था .
अब रही बात लूट खसोट और भ्रष्टाचार की , क़ि उन्होंने देश और समाज को लूटा है भ्रष्ट आचरण किया है , सो भाई उनका पाप उनके सर !
उनके पुन्य का उदय था सो उन्हें तो मिलना ही था , यदि बेईमानी नहीं करते तो इमानदारी से मिलता , मेहनत नहीं करते तो घर बैठे मिलता.
अब यह तो उनकी दुर्बुद्धी और अविवेक है क़ि वे अच्छे भले फलों को पहिले सड़ाते हें , फिर खाते हें . वे व्यर्थ पाप में पड़ रहे हें तो हम क्या करें ?
अरे यार ! तू क्यों रो-धोकर परेशान हुआ जा रहा है ?
तुझे तो वह मिला हुआ है जो तेरे भाग्य में है , जैसा तेरा पुन्य-पाप का उदय है .
तेरा न तो कुछ छिना है और न छिन सकता है , और न ही अतिरिक्त तुझे कुछ मिल ही सकता है .
सचमुच तो न किसी को कुछ भी मिला है और न किसी से कुछ भी छिना है , सब कुछ वहीं का वहीं तो है , सब कुछ बही का बही भी है .
सोना , सोना था , सोना है , सोना रहेगा .
आज इस तिजोरी में है कल दूसरी में रहेगा ; क्या फर्क पड़ता है .
सोना यहीं रहेगा , वह भी चला जाएगा और अपन भी चले जायेंगे .
अरे ! सोना ( कोई भी धन ) खाने के काम तो आयेगा नहीं , भूंख तो मिटाएगा नहीं .
उसका फायदा क्या है ? सिर्फ नुकसान ही है !
जिसके पास रहेगा उसकी नींद उडाएगा , वह चिन्तित रहेगा , उसकी सुरक्षा का यत्न करना पडेगा , उसके पीछे खर्चा भी करना पडेगा .
अरे ! इतने काम और चिंताएं तो पहिले ही थीं , एक और जुड़ गई !
और फिर इतना सब करते - करते भी एक दिन तो चले ही जाना है .
जब जाएगा भी तब किस मार्ग से गया इससे भी क्या फर्क पड़ता है ?
तूने दान दिया या खो गया ?
तूने खर्चा या लुट गया ?
चोर ले गए या सरकार ले गई ?
भाई ने बांटा या "भाई" लोगों ने ?
अपने बच्चों के पास गया या पडौसी के ?
तेरा तो गया न ?
जब तू ही गया तो क्या फर्क रहा , सब एक से ही हो गए , तेरे अपने बच्चे भी अब बैसे ही पराये हो गए जैसे पडौसी के थे , तब क्यों द्वंद्व में रहता है क़ि इसी को मिले उसके पास न चला जाये .
हो न हो तू ही पडौसी के यहाँ ही पैदा हो जाए , तब ?
अरे भोले ! उचित तो यह है क़ि जगत का जो परिणमन हो रहा है वह होने दे , उसका तो तू मात्र उदासीन ज्ञाता - द्रष्टा ही बना रह , तू तो अपना स्वरूप समझ और उसमें स्थित हो जा , तेरा कल्याण होगा !
बहूत उत्तम विचार (कोई समझे भी हाय तौबा त्राही माम त्राही माम के चीख पुकार चारों ओर )
ReplyDelete१९५० या १९५२ के चलचित्र के गीत की पंक्ति
जाएगा जब यहाँ से कुछ भी ना साथ होगा
दो गज कफन का टुकड़ा तेरा लिबास होगा
वही दो गज जमीन भी अपनी दो घंटों के लिए होगी