मैं अपना हर काम " कल " करना चाहता हूँ पर मुआ " कल " कभी आता ही नहीं है .
मैं किसी काम के लिए जिस " कल " को चुनता हूँ वह जब भी आता है उसका नाम " आज " होता है और " आज " के दिन मैं हमेशा बहुत ही व्यस्त रहता हूँ , या तो मैं किसी धुन में रहता हूँ और या मैं मूड में नहीं होता हूँ .
वेचारा वक्त भी अड़ियल नहीं है , वह मेरा पूरा सहयोग करना चाहता है , कल के प्रति मेरे व्यामोह को देखते हुए वह एक ब़ार फिर अपना नाम बदलकर " कल " बन जाता है पर तब तक बहुत देर हो चुकी होती है , वह मेरी पहुँच से दूर हो चुका होता है , उस बीते हुए " कल " में मैं कुछ भी नहीं कर सकता हूँ .
बस इसी लुकाछिपी में यह जीवन यूं ही बीता जाता है .
यदि मुझे अपने इस जीवन में कुछ भी करना है तो मुझे " आज " ही करने की आदत डालनी होगी , आज ही नहीं " अभी "
भाई जी आशीर्वाद
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति जीवन के आने वाले कल
कल शब्द से मुझे गाँधी जी का भजन याद आ गया जो देहली प्रार्थना में गाया जाता था
उठ जाग मुसाफिर भोर भई
जो कल करना वो अज कर ले
जो अज करना वो अब कर ले
१९६४ के चलचित्र का गीत की पंक्ति जो भी है यही इक पल है
thanks
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