Tuesday, October 9, 2012

Parmatm Prakash Bharill: कहते हें - " दिया बुझने से पहिले ज्यादा तेजी से जल...


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--मेरे पास चैन था , सुकून था , समय था , शक्ति थी , स्वास्थ्य था , प्यार और दुलार था , उत्साह था , सरलता थी , उदारता थी , चरित्र और ईमान था ,  अपने थे , मित्र थे , कल्पना लोक था , नींद थी , भूंख थी .
आज मेरे पास बहुत कुछ है  पर इनमें से कुछ भी नहीं .----
---मष्तिष्क की उर्वरा शक्ति कहाँ चली गई ,पता ही नहीं चला . अब वहां बस , कूड़ा - करकट भरा है , राग- द्वेष , चिंता - भय , गिले - शिकवे , अतृप्त लालसा और असंतोष , छद्म अहसास और मिथ्या मान्यताएं .---
-------------जो मेरे साथ हो रहा है , वही मेरे पुरखों के साथ भी हुआ था पर उनके साथ यह सब होते हुए मैं देख न सका . इसका मतलब यह कतई नहीं है की यह सब होते हुए मैंने देखा ही नहीं ; न सही अपने पुरखों के साथ ,पर औरों के साथ देखा है , देश - गाँव में देखा है , गली - मुहल्ले में देखा है , पडौसी को देखा है .-------------
------पुरखों ने नहीं सीखा और उन्होंने भोगा , मैंने नहीं सीखा और मैंने भोगा ; पर इससे क्या ?
वे भी नहीं सीखेंगे ! अब भी नहीं .--------------


Parmatm Prakash Bharill: कहते हें - " दिया बुझने से पहिले ज्यादा तेजी से जल...: अहो ! यह मैंने क्या किया ?- मुझे जो प्राप्त था , उसे तो मैं अपनी बपौती मान बैठा था  ; मानो यह तो सदा ही मेरे पास रहेगा ही . मैंने उस...

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