हमारे दुर्भाग्य की नियति किसी और ने नहीं लिखी है , दुनिया में किसी का का भवितव्य कोई और नहीं तय करता है .
हमारी हथेलियों और मस्तक पर ये दुर्भाग्य सूचक लकीरें स्वयं हमने खींचीं हें और ये फायनल नहीं , अंतिम नहीं , इन्हें बदला भी जा सकता है , पर यह काम कोई और नहीं ; हम स्वयं ही कर सकते हें .
मन चाही फसल के सामान ही खरपतबार भी यूं ही नहीं पनप जाती है , उसे भी पोषण चाहिए .
सौभाग्य की तरह ही ये दुर्भाग्य भी यूं ही नहीं पनपता है इसे भी पोषण चाहिए , संरक्षण चाहिए .
यदि पोषण और संरक्षण न मिले , हमारा आश्रय न मिले तो सौभाग्य की तरह ही दुर्भाग्य भी नष्ट हो जाएगा .
यह तो स्वभाव से अत्यंत सवेदनशील , सुकुमार और कोमल वस्तु है .
ये तो हमारी दूषित और हीन वृत्तियाँ , मिथ्या मान्यताएं एवं अविवेक ही हें जो दुर्भाग्य को जन्म देते हें , उसका पोषण और संरक्षण करते हें .
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