Friday, January 25, 2013

अब भी अगर तेरी दुर्बुद्धी नष्ट नहीं होती है तो फिर यह मानकर चलना कि तेरा घोर दुर्भाग्य दस्तक दे रहा है .


अरे करमफूटे ! अब तो यह कुटिलता छोड़ दे ! 
जब सारे ही अनुकूल संयोग जुट गए हें और सब और अनुकूलता व्याप्त है तब क्यों नहीं शान्ति से बैठकर इन सुख से यह जीवन जीता है और आत्मकल्याण के उपाय करता है ?
सहज ही विभिन्न पक्षों के बीच जो संतुलन स्थापित हो गया है उसे यूं ही सुरक्षित बना रहने दे , ज्यादा होशियारी मत कर , कहीं इसे और वेहतर करने के चक्कर में जो उपलब्ध है वह भी मत खो बैठना .
फर्नीचर पर धूल की पर्त चढ़ती है तो चढ़ जाने दे , गमले के फूल असमय झ्ड़ते हें तो झड जाने दे , पर्दों का रंग उड़ता है तो उड़ जाने दे ; इन सबसे तेरा क्या लुट जाएगा ?
यदि संतुलन बिगड़ गया तो रात की नींद और दिन का शुकून उड़ जाएगा , और फिर तो फर्नीचर पर धुल की परतें और मोटी होती जायेंगी , फूल तो खिलना ही भूल जायेंगे और परदे ? इस जिन्दगी के परदे पर तेरी दुर्दशा की फ़िल्में सारी दुनिया देखेगी .
अरे दरिद्री ! जो मिल गया है उसमें संतुष्ट रह ! तूने कभी ऐसा कुछ किया ही कब है कि तुझे सब कुछ पोरी तरह अनुकूल मिले ? अरे तू ही क्या ; कौन है इस दुनिया में जिसे सब अनुकूलताएँ हें ?
राजा और राणाओं को भी अनंत प्रतिकूलताएँ हें .
यदि समय पर तेरा पेट भर जाता है और शुकून से सोने को मिल जाता है तो समझ ले कि  तुझे जीवन की निधियाँ मिल गई , बस ! 
कमसे कम कोई आकर तुझे डिस्टर्ब तो नहीं करता है न ? तब फिर तुझे क्या चाहिए ? 
अन्तर्मग्न होकर आनंद का उपभोग क्यों नहीं करता है ? क्यों इस दुनिया से उलझना चाहता है ? क्या तुझे पता नहीं कि इस जगत का स्वरूप क्या है ? 
तेरे ये सब महल और हवेलियाँ कीचड और मलबे से बने हें और अगर तूने ज़रा सी होशियारी करने की कोशिश की तो इनके फिर से कीचड और मलवे में वदलते देर न लगेगी .
तेरी ये सुन्दर काया भी किस-किस तरह की  गंदगी से मिलकर बनी है और ज़रा भी संतुलन बिगड़ते ही यह फिर से उसी गंदगी में परिवर्तित हो जायेगी .
और हाँ ! अपने उसी घिसे-पिटे बहाने का सहारा मत लेना कि " मैं क्या करूं , मैं तो बहुत शान्ति रखना चाहता हूँ पर सामने वाला ही जब लगातार ही उकसाता रहे तो मैं अकेला क्या कर सकता हूँ क्योंकि ताली तो दोनों हाथों से बजती है ".
अरे भाई ! सड़क दुर्घटना में यदि तेरे हाथ-पांव टूट जाते हें तो इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि गल्ती तेरी नहीं सामने वाले की थी , कष्ट तो तुझे ही भोगना होगा न , भले ही अपनी गल्ती की सजा वह भी भुगतेगा ही , पर इससे तुझे क्या फायदा ? इसलिए अपने आपको सामने वाले की कृपा के भरोसे छोड़ देने की बजाय अपना हित इसी में है की हम स्वयं इतनी सावधानी रखें की यदि सामने वाला गलती भी करे तब भी हमें नुक्सान न पहुंचा सके .
अंततः हमारी सुरक्षा हमारी अपनी जिम्मेदारी है ( किसी और की नहीं ) क्योंकि इसी में हमारा हित है .
यदि किसी तरह से एक अनुकूल संतुलन स्थापित हो गया है तो समझ लेना की तेरे जन्म जन्मान्तर के पुन्य फले हें , अब अधिक होशियारी मत कर !
कहीं ऐसा न हो कि चौवेजी छ्बेजी बनने को निकलें और दुवेजी बनकर लौटें .
अब भी अगर तेरी दुर्बुद्धी नष्ट नहीं होती है तो फिर यह मानकर चलना कि तेरा घोर दुर्भाग्य दस्तक दे रहा है .
ॐ शांति !

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