Saturday, January 26, 2013

वाह रे तथाकथित आत्मार्थी !

वाह रे तथाकथित आत्मार्थी !

अपनी वर्तमान प्रवृति को तो देख ! 
किस तरह तू आने वाली नई फिल्म का वेसब्री से इन्तजार करता है , कई हफ़्तों पहिले से उसकी चर्चा में व्यस्त , मगन हो जाता है , उसके शीघ्र आने की कामना करता है सपने संजोता है और पहिले दिन का प्रथम शो देखने की तमन्ना रखता है . यदि फिल्म आ जाए और किसी कारणवश दिन - दो दिन देखने को न जा सके तो अपने दुर्भाग्य को कोसता है और जल्दी से जल्दी उसे देखने लेने का संकल्प व्यक्त करता रहता है . मन में तो तड़प बराबर बनी ही रहती है . 
हालांकि जानता है कि अभी कमसे कम हफ्ते दो हफ्ते तो चलेगी ही , कहीं जाने वाली नहीं है और फिर बाद में भी टीवी पर तो आयगी ही , और बाजार में सीडी भी मिलती ही है पर फिरभी इस प्रकार का संकल्प व्यक्त करता ही रहता है कि मुझे समय रहते इसे देख ही लेना है कहीं रह न जाऊं .
जब फिल्म देखने को जाना हो तो 2-4 मित्र भी साथ चाहिए , भला अकेले-अकेले देखने में क्या मजा है ? 
यदि कोई सहज ही उपलब्ध न हो तो उनकी चिरौरी करता है उनकी शर्तें मानता है पर उन्हें साथ ले जाता है . 
फिर जब देखने को जाता है तो सबसे मंहगे थियेटर में जाता है वह भी एकदम प्राइम दिन और प्राइम टाइम पर जब कि टिकिट सबसे मंहगा होगा है डबल रेट पर , हालांकि उसी दिन सुबह , वही फिल्म उसी थियेटर में आधे दाम पर भी देखी जा सकती है .
यदि विन्डो पर टिकिट न मिले तो ब्लेक में दूने दाम पर खरीदने से भी नहीं चूकता है .
ऐसा करके अपने आप को गौरवान्वित अनुभव करता है .
चटखारे और मजे ले लेकर आनंद के साथ फिल्म देखता है , देख लेने के बाद गहराई से उसकी समीक्षा करता है , कई-कई दिनों तक लोगों से उसकी चर्चा करता है , मजे लेता है और उन्हें भी देखने की प्रेरणा देता है .प्रेरणा ही नहीं आदेश तक देता है  और फिर भी यदि कोई जाने को तैयार न हो तो साथ चलकर दिखाने के लिए भी तैयार रहता है वह भी अपने खर्चे से .

क्या तुझे कभी किसी आने वाले सत्संग का भी ऐसा ही इन्तजार रहा है ?
किसी से उसकी चर्चा की है ?
उसके सपने संजोये हें ?
साधारण सा काम भी छोड़कर उसमें शामिल हुआ है ?
किसी को साथ चलने की प्रेरणा दी है ?
किसी को साथ लेकर गया है ?
उसमें भाग लेकर प्रफुल्लित हुआ है ?
फिरसे इसमें शामिल होने की भावना भाई है ?
उसके आनंद और लाभ की चर्चा औरों से की है ?
क्या अपने आप को गौरवान्वित अनुभव किया है ?

हाँ शायद यदि कोई शास्त्र टा प्रवचनों की सीडी खरीदने की इक्षा हुई होगी तो जाने कितने दिनों तक कीमत आधी होने का इन्तजार करता रहा होगा .

अब तू ही नक्की कर कि तू कौन है ? 
आत्मार्थी ?
या कुछ और ?

1 comment:

  1. बहुत खूब लिखा है आपने, आज हर कोई अंधी दौड में शामिल है और अपनी आत्मा के कल्याण का भी ख्याल नहीं है

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