Monday, June 17, 2013

आना है तब तू आ जाना,क्यों यादों में प्रतिपल आती है . तू तो कितनी शांतिपूर्ण है , फिर यादें क्यों तडपाती हें

अरे ! यदि तू जीना ही चाहता है तो जी ले न ! मिला तो है यह जीवन !
पर जीने के समय प्रतिपल मरता है और मरण की वेला पर जीना चाहता है .
न तो इसे जीना आता है और न ही मरना आता है .
न तो शान से जीता है और न शांति से मरता है .

कितना लंबा यह जीवन और उसके बाद बस एक पल की यह मौत .
कितना कोलाहल पूर्ण यह जीवन और कितनी शांतिपूर्ण यह मौत .
फिर भी जाने क्यों 
यह तो बस जीना चाहता है , मरना ही नहीं चाहता ; कभी भी .
जीना तो चाहता है पर मरते-मरते जीता है . जीवन भर प्रतिपल मौत के खौफ जीता है .
अरे ! यदि तू जीना ही चाहता है तो जी ले न ! मिला तो है यह जीवन !
पर जीने के समय प्रतिपल मरता है और मरण की वेला पर जीना चाहता है .
न तो इसे जीना आता है और न ही मरना आता है .
न तो शान से जीता है और न शांति से मरता है .
सच तो यह है कि -
जो प्राप्त है वह पर्याप्त है .
मुझे न तो मौत की चाह है और न ही मौत से इन्कार .
मुझे जन्म नहीं जीवन चाहिए .
क्योंकि जन्म , मौत से जुडा है , यदि कोई जन्मता है तो उसे मरना होगा .
मुझे जन्म - मरण से मुक्त जीवन चाहिए .
यदि जन्म - मरण नहीं तो परिवर्तन नहीं .
यदि परिवर्तन नहीं हो सकता तो ऐसा जीवन होना चाहिए कि परिवर्तन की आवश्यकता ही न रहे , परिवर्तन की चाहत ही न रहे . ऐसा आदर्श जीवन .
ऐसा जीवन सम्पूर्णता में है , अपने स्वरूप की सम्पूर्णता में .
अपने को ( आत्मा को ) जानिये , पहिचानिए , उसी में रम जाइये , सम्पूर्णता प्रकट हो जायेगी .
जन्म - मरण का अभाव हो जाएगा .
हम द्रव्य स्वभाव से भगवान् हें , पर्याय में भी भगवान् बन जायेंगे .
तथास्तु !

आना है तब तू आ जाना,क्यों यादों में प्रतिपल आती है
तू  तो कितनी शांतिपूर्ण है ,  फिर यादें क्यों तडपाती हें
जो जन्म की यही सजा ,जब तक जीना प्रतिपल मरना
नहीं जन्मना फिरसे मुझको ,आजाये मौत जब आती है

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