Thursday, October 31, 2013

क्यों इक दिन भी अंधेरा हो ,क्यों ना हों प्रतिदिन दीपावलियाँ

जीवन के प्रतिदिन दीपावली हो  (कविता )
-परमात्म प्रकाश भारिल्ल 

प्रतिदिन इक इक दीप जले , बन जाए इक दिन दीपावलियाँ 
बर्ष यदि अन्धकारमयी हो,इक दिन की व्यर्थ हें फुलझड़ियाँ 
आओ प्रतिदिन - प्रतिपल ही हम , खुशहाली के  दीप जलाएं 
क्यों इक दिन भी अंधेरा हो ,  हों ना क्यों प्रतिदिन दीपावलियाँ 

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