Thursday, June 12, 2014

एक बार यदि हमने रिश्तों को तोड़ डाला या उनकी परिभाषाएं मिटा डालीं तो बस समझ लीजिये हम बड़े ही संकट में हें .

रिश्ते , रिश्तों की परिभाषाएं और एक दुसरे के प्रति तद्जनित व्यवहार जो हें , जैसी हें उन्हें स्वीकार कर लेने में ही समझदारी है .
इनसे खेलना खतरनाक है .
एक बार यदि हमने रिश्तों को तोड़ डाला या उनकी परिभाषाएं मिटा डालीं तो बस समझ लीजिये हम बड़े ही संकट में हें .
अब तो बस कदम-कदम पर सबाल उठेंगे , सबाल ही सबाल , सिर्फ सबाल !
ऐसे सबाल , जिनका कोई जबाब नहीं .
एक बार रिश्तों की और तद्जनित व्यवहारों की परिभाषाएं मिटा डाली गईं तो कदम – कदम पर गिले–शिकवे होंगे कि ऐसा होना चाहिए था , ऐसा नहीं हुआ . ऐसा नहीं होना चाहिये था तब ऐसा क्यों हुआ ? 
सबाल उठाने बालों के अपने तर्क होंगे और जबाब देने बालों के अपने पर सहमत कोई किसी से नहीं होगा . हो भी तो कैसे ? जब कोई परिभाषा ही न रही तो क्या सही और क्या गलत ?

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